महाशिवरात्रि: प्रकृतिस्वरूप कामसुन्दरी पार्वती और पुरुषस्वरूप शिव का महामिलन

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लेखक: अवधेश झा

शिव ब्रह्मस्वरूप पुरुष हैं और आदि शक्ति माता पार्वती, दोनों अनादि काल से ही सृष्टि निर्माण में मुख्य योगदान दिए हैं। ईशावास्योपनिषद कहता है, वह ब्रह्म ही सृष्टिकर्ता को उनके कार्य और कर्तव्य सौंपे हैं। वह सर्वव्यापक, सर्वज्ञ और सत्य – सनातन है। जहां शिव जगत के आधार, ब्रह्म ज्योति और दिव्य तेज हैं, जिससे यह निर्माण सर्वव्यापक, सर्व विस्तार हुआ है तथा जिसमें सभी को लीन होना है, उस प्रलय के देवता शिव सर्वत्र, सर्व रूप हैं। वहीं माता पार्वती, शिव के निराकार भाव को साकार रूप प्रदान करती हैं। प्रकृति की अधिष्ठात्री देवी हैं माता पार्वती। प्रकृति के बिना पुरुष शून्यकार, निराकार तेज ही है। प्रकृति ही पुरुष को नाम और रूप का साकार रूप प्रदान करती है। यह साकार रूप शुभ संकल्प से ही शुभारंभ होता है। उस ब्रह्म से ही उत्पन्न प्रकृति है, लेकिन प्रत्येक पुरुष की अपनी प्रकृति होती है, जो उस पुरुष को ही अनुसरण करती है। जैसे शिव की प्रकृति पार्वती, श्रीहरि की महालक्ष्मी, ब्रह्मा की महासरस्वती आदि; इस तरह से यह क्रम सामान्य पुरुष तक विस्तार है।
पुरुष के बिना प्रकृति शून्य है, निराधार है और अपूर्ण है। प्रकृति और पुरुष का महा मिलन ही महाशिवरात्रि है। यह सृष्टि क्रम है चलता रहता है और प्रलय के समय उस शिव रूप पुरुष में लीन हो जाती है और पुनः सृष्टि के आरम्भ में प्रकट होकर अपना कार्य करने लगती है। इसलिए, प्रकृति की चेतन शक्ति ब्रह्म ही है और उस ब्रह्म की सक्रियता प्रकृति शक्ति से ही होती है। वह प्रकृति शक्ति ही आदि शक्ति माता पार्वती हैं। वही भगवान विष्णु की बहिरंगा शक्ति माता दुर्गा है, वही भगवान कृष्ण की अंतरंगा शक्ति श्रीराधा रानी हैं, ब्रह्मा की वेद – वाणी शक्ति माता सरस्वती है तथा वही भगवान विष्णु की धन, ऐश्वर्य और वैभव शक्ति माता महालक्ष्मी हैं। वह आदि अनंत ब्रह्म स्वरूपिणी माता सम्पूर्ण ब्रह्मांड के कण कण में समाहित हैं, वही कर्म को संचालित करती है, वही कर्म का फल प्रदान करती है।
इस विषय पर जस्टिस राजेन्द्र प्रसाद, पूर्व न्यायाधीश, पटना उच्च न्यायालय, पटना का कहना है कि, “प्रकृति और पुरुष का साथ और समर्पण अनादि काल से है। यह साथ इतना सूक्ष्म और दृढ़ है कि कभी – कभी ब्रह्म ही प्रकृति और प्रकृति ब्रह्म है, ऐसा प्रतीत होने लगता है। प्रकृति की चार अवस्था (जागृत, स्वप्न, सुषुप्ति और तुरीय) में सबसे ज्यादा प्रभाव जागृत और स्वप्न अवस्था में होता है। जागृत अवस्था में वस्तु और उपलब्धि प्रमाण है, स्वप्न अवस्था में उपलब्धि है लेकिन वस्तु नहीं, सुषुप्ति अवस्था में ब्रह्म उदित होता है, इसलिए इस अवस्था में वस्तु और उपलब्धि का अभाव रहता है तथा तुरीय अवस्था सुसुप्ति का ही चिर अवस्था तथा ब्रह्म का पूर्ण अवस्था है। शिव सभी अवस्थाओं और काल से परे हैं, इसलिए कालातीत है और निराकार ब्रह्म है, सम्पूर्ण प्रकृति ही उनका आकार है।”
प्रकृति माता ही पार्वती माता हैं, मातेश्वरी समस्त माताओं के गर्भों के हिरण्य गर्व हैं और पुरुष स्वरूप परमेश्वर शिव उसमें चेतनता स्वरूप बीज है, इसलिए वह परमपिता है, सभी पिताओं के पिता हैं। माता जो गर्भ धारण करती है, उनका स्थान शास्त्रों में बहुत ऊंचा है, एक पूर्ण प्रकृति से दूसरी पूर्ण प्रकृति उत्पन्न हो जाती है और इससे दोनों की पूर्णता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
ऐसे शिवकामसुंदरी पार्वती को शास्त्रों में इस तरह से गुणगान और नमन किया है:-
त्वं माता जगतां पितापि च हरः सर्वे इमे बालका
स्तस्मात्त्वच्छिशुभावतः सुरगणे नास्त्येव ते सम्भ्रमः।
मातस्त्वं शिवकामसुन्दरि त्रिजगतां लज्जास्वरूपा यत
स्तस्मात्त्वं जय देवि रक्ष धरणीं गौरि प्रसीदस्व नः॥
माता पार्वती हम सभी की माता हैं और भगवान शिव हम सभी के पिता हैं। हम सभी उन्हीं की संतान हैं। सभी देवता आपकी ही संतान हैं और इस कारण उन्हें किसी प्रकार का भय नहीं है। माता पार्वती हम सभी को शुभ फल देने वाली हैं और इसमें किसी भी प्रकार का भ्रम नहीं है। आपका गुण मातृत्व का है और आप ही शिवसुंदरी हैं। आप तीनों लोकों में लज्जा का स्वरुप हैं। हे माँ पार्वती!! आप इस पृथ्वी की रक्षा करें और यहाँ से पाप का नाश कर दें। आप हम सभी से प्रसन्न होकर हमारा उद्धार कर दीजिये।
यहां माता इसलिए शिवकाम सुंदरी हैं, क्योंकि माता शिव के ही शुभ संकल्पों को धारण की हुई हैं तथा माता की सभी गुण शुभता फल प्रदान करके वाली है। इसलिए, माता सर्व सुंदरी है, शिव सुंदरी हैं। माता से ही प्रकृति की रूप और यौवन की सुंदरता प्रदान करती है। मातृत्व गुण प्रधान होने के चलते, माता सभी प्राणियों के रक्षक है और परमपिता शिव संरक्षक हैं। आगे शास्त्र कहता है: –
त्वमात्मा त्वं ब्रह्म त्रिगुणरहितं विश्वजननि
स्वयं भूत्वा योषित्पुरुषविषयाहो जगति च।
करोष्येवं क्रीडां स्वगुणवशतस्ते च जननीं
वदन्ति त्वां लोकाः स्मरहरवरस्वामिरमणीम्॥
पार्वती माता ही आत्मा रूप में हमारे अंदर विद्यमान हैं। वे ही ब्रह्म स्वरुप हैं अर्थात उन्होंने ही इस सृष्टि का निर्माण किया है। उनके अंदर त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु व महेश) के गुण हैं। वे ही इस सृष्टि की जननी हैं। माता पार्वती स्वयं ही हर तत्व का प्रतिनिधित्व करती हैं और वे ही पुरुष तथा स्त्री रूप में इस पृथ्वी पर विचरण करती हैं। उनके कारण ही इस सृष्टि में विषय की प्रधानता है और कर्म होते हैं। वे अपने विभिन्न रूपों में इस पृथ्वी पर कई तरह की क्रीड़ायें (कर्म) करती हैं और सभी गुण उन्हीं के ही अधीन हैं। तीनों लोकों के जीव माता पार्वती की वंदना करते हैं। माता पार्वती ही हमारे दुखों का अंत कर हमें वरदान देती हैं। आगे शास्त्र कहता है: –
त्वं स्वेच्छावशतः कदा प्रतिभवस्यंशेन शम्भुः पुमा
न्स्त्रीरूपेण शिवे स्वयं विहरसि त्रैलोक्यसम्मोहिनि।
सैव त्वं निजलीलया प्रतिभवन् कृष्णः कदाचित्पुमान्
शम्भुं सम्परिकल्प्य चात्ममहिषीं राधां रमस्यम्बिके॥
पार्वती माता ने अपनी इच्छा के अनुसार सभी को वश में किया हुआ है। कभी वे अपनी प्रतिभा का परिचय देते हुए शिव का रूप धारण कर लेती हैं तो कभी स्त्री रूप में शिव के साथ इस लोक का भ्रमण करती हैं। माँ पार्वती के रूप में वे तीनों लोकों के जीवों का मन मोह लेती हैं। अपने इसी गुण के कारण कभी वे श्रीहरि के ही मानवीय रूप श्रीकृष्ण का रूप धारण कर लेती हैं जो अत्यधिक प्रतिभावान है। तो वहीं दूसरी ओर, वे शिव को अपने मन में धारण कर और उनका स्मरण कर, माता राधा का रूप ले लेती हैं और श्रीकृष्ण के साथ भ्रमण करती हैं। आगे शास्त्र कहता है: –
प्रसीद मातर्देवेशि जगद्रक्षणकारिणि।
विरम त्वमिदानीं तु धरणीरक्षणाय वै॥
देवताओं की माता व इस जगत की रक्षा करने वाली माँ पार्वती!! अब आप हमसे प्रसन्न हो जाइये। आप ही हम सभी को सुख प्रदान करती हैं और हमारी रक्षा करती हैं। इस तरह से प्रकृति और पुरुष का यह महामिलन, महाशिवरात्रि हम सभी के लिए महामंगलकारी और शुभकारी है।

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