पटना, दिनांक: 08 जनवरी 2025 :: पटना स्थित जेडी वीमेंस कॉलेज के संगीत विभाग द्वारा आयोजित श्रुति मंडल व्याख्यान माला के अंतर्गत एक समारोह में वरिष्ठ कत्थक कलाकार, डाॅ रमा दास ने कहा कि आजकल शास्त्रीय नृत्य शैलियों में युवा पीढ़ी के लिए बहुत सी संभावनाए हैं। जीविकोपार्जन के अनेक अवसर हैं यहाँ, साथ ही कला परंपरा को जीवित रखने और उसे आगे बढाने की सांस्कृतिक प्रतिष्ठा भी मिलती है उन्हें।
संगीत विभाग, जेडी वीमेंस कॉलेज अपने विद्यार्थियों को समय- समय पर शास्त्रीय संगीत और शास्त्रीय नृत्य के विशिष्ट कलाकारों और विशेषज्ञों से रू ब रू कराती है और उन्हे इस विषयों के श्रेष्ठ कलाकारों और गुरुओं के अनुभवों को जानने और उनसे मार्गदर्शन लेने का मौका देती है।
इसी व्याख्यान श्रृंखला में कौलेज ने बिहार सरकार प्रदत्त ‘अम्बपाली पुरस्कार’ तथा सुर सिंगार समसद (मुम्बई) प्रदत्त ‘सिंगार मणि’ सम्मान से विभूषित बहुचर्चित कत्थक कलाकार और गुरू, डाॅ रमा दास को आमंत्रित किया था।
डाॅ रमा ने अपना डेब्यू कार्यक्रम 1972 में पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हौल में आयोजित पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर शताब्दी समारोह मे ही आदरणीय यामिनी कृष्णमूर्ति और किशोरी अमोणकर के साथ मंच साझा किया था और इसके बाद उन्होंने बिहार के साथ-साथ देश भर के सभी प्रतिष्ठित समारोहों में कार्यक्रम किया। इस बीच उन्होने कई विश्वविद्यालयों में व्याख्यान भी दिया और परीक्षक भी रहीं। बिहार सरकार द्वारा निर्मित हिन्दी फिल्म ‘विद्यापति’ में राजनर्तकी की भूमिका निभाई और सुधांशु शेखर चौधरी लिखित मैथिली नाटक, ‘भफाइत चाहक जिनगी ‘ में चेतना समिति के मंच पर नायिका की भूमिका भी निभाई।
इतने विविध अनुभवों को समेटे डाॅ रमा इन दिनो मंचीय कार्यक्रम भी करती हैं और विद्यार्थियों को प्रशिक्षित भी करती हैं।
जे डी वीमेंस कॉलेज में आज उनके व्याख्यान का विषय था, ‘कत्थक नृत्य और संगीत: युवा पीढ़ी के लिए रोजगार की संभावनाए’। इस विषय पर चर्चा करते हुए डॉ रमा ने कहा कि यहां आज उत्तर भारत के शास्त्रीय नृत्य, कत्थक की चर्चा करते हैं। कत्थक पूरे उत्तर भारत का एकमात्र शास्त्रीय नृत्य है। इसमें नृत्य सीखनेवालों के लिए तो विकास का मार्ग है ही बल्कि शास्त्रीय गायन के विद्यार्थियों के लिए भी जीविकोपार्जन के कई अवसर हैं।
उन्होने कहा कि कत्थक एक ऐसी शास्त्रीय नृत्य शैली है जिसमें विभिन्न शैलियों के गीत-गायन का प्रयोग होता है। शायद ही कोई दूसरी नृत्य शैली हो जिसमे इतने प्रकार के गायन का प्रयोग होता है। कत्थक में भाव नृत्य के दौरान लोग गीत-भजन भी गाते हैं और कीर्तन भी। यहां ठुमरी पर भी भाव नृत्य होता है और गज़ल पर भी। बल्कि अब तो कलाकार ध्रुपद-धमार और खयाल की बंदिशों पर भी लोग भाव नृत्य करते हैं। अतः उन्हे ऐसे गायकों की आवश्यकता होती है गायन के विद्यार्थी इस सारी गायन शैलियों को सीखकर कत्थक कलाकारो के संस्थान से जुड सकते हैं।
उन्होने कहा कि बड़े शहरों मे ही नहीं बल्कि अब तो पटना में कई संस्थाएं हैं जिन्हे ऐसे सिद्धहस्त गायकों की आवश्यकता है। रमा जी ने कहा कि यह कत्थक नृत्य का एक टेक्निकल ऐसपेक्ट हैं जिसपर थोड़ा मेहनत करने पर युवा गायक अपना जीवन चला सकते हैं। इस अवसर पल रमा जी ने कुछ रचनाओं पर बैठकी भाव भी दिखाया।
इसके पहले डॉ रमा दास ने विद्यार्थियों को कत्थक नृत्य के आरंभ और इसके विकास के बारे में एक संक्षिप्त जानकारी दी।
बिहार में कत्थक नृत्य शैली के इतिहास के बारे चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि राज्य में किस काल में ये नृत्य शैली आई इसकी कोई निश्चित जानकारी नहीं है।
“लेकिन प्राचीन ग्रंथों में उपलब्ध जानकारियों के आधार पर ये कहा जा सकता है कि मगध के सम्राट धननंद के काल मे कोई नृत्य शैली रही होगी पाटलिपुत्र में। बल्कि बुद्ध के कल में भी थी कोई नृत्य शैली। अम्बपाली तो वैशाली की थीं,” डाॅ रमा दास ने कहा।
इसके पहले प्रो मीरा कुमारी, प्रधानाचार्य, जेडी वीमेंस कॉलेज ने डाॅ रमा दास को बुके और शौल देकर सम्मानित किया। संगीत विभागाध्यक्ष, डा रीता दास ने कहा कि श्रुति मंडल व्याख्यान माला में हम विद्यार्थियों को कलाकारों और कला गुरुओं को सुनने जानने का अवसर प्रदान करते हैं।
कार्यक्रम का संचालन राकेश पांडे ने किया और धन्यवाद ज्ञापन, डाॅ रेखा दास , व्याख्याता, संगीत विभाग ने किया।
इस अवसर पर कौलेज की अनेक शिक्षिकाएं डाॅ सुमिता कुमारी, डाॅ मालिनी वर्मा, डाॅ रीता भगत, शांता झा इत्यादि तथा भारी संख्या में छात्र-छात्राएं वहां मौजूद रहे।