- जितेन्द्र कुमार सिन्हा
पटना :: संयुक्त राष्ट्र की प्रतिवेदन में रेखांकित किया गया है कि बहुत अधिक आबादी भारत के लिए एक गम्भीर चिन्ता का विषय है। इस आधार पर ऐसा संभावना व्यक्त किया जा रहा है कि हो सकता है भारत जनसंख्या के मामले में बहुत जल्द चीन को पीछे छोड़ देगा। यह भी संभावना व्यक्त किया जा रहा है कि अनुमानों के आधार पर यह जनसंख्या वृद्धि 2027 तक होगा।
भारत के लिए जनसंख्या वृद्धि एक गंभीर चिंता का विषय है। क्योंकि जनसंख्या वृद्धि से स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक विकास सहित विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित करती है। देखा जाय तो जनसंख्या वृद्धि से भारत में गरीबी दिनों दिन बढ़ती जा रही है और खाद्य सुरक्षा में भी कठिनाई हो रही है। परिणामस्वरूप भारत की आर्थिक स्थिति बुरी तरह प्रभावित हो रही है। गरीबी के कारण निर्धन लोग तक समुचित भोजन नही पहुंच पा रहा है और खाद्य सामग्री पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हो पा रहा है।
भारत में अधिक आबादी के कारण पहले से ही दबाब झेल रही स्वास्थ्य सेवा प्रणाली का बोझ और बढ़ रही है। भारत कुछ सालों से, पेयजल उपलब्धता को लेकर भी, चुनौतियों का सामना कर रही है। जनसंख्या बढ़ने से पीने के साफ पानी की भी कमी देखी जा रही है, जिसके कारण कहीं जमीन से पानी निकालने पर कानूनन अनुमति आवश्यक है तो कहीं काबेरी नदी से तो कहीं यमुना नदी से तो कही गंगा नदी से पानी को रिफाईन कर आपूर्ति किया जा रहा है और करने की कार्रवाई की जा रही है।
जनसंख्या वृद्धि के कारण तरह- तरह की समस्याएं हमलोगों के आंखों के सामने दिख रहा है और यह समस्याएं दिन पर दिन बद से बदतर होती जा रही है। दूसरी गंभीर समस्या है भारत में लिंग भेदभाव की है, जो बहुत ही चितांजनक है। उपलब्ध आकंड़ों को माने तो प्रति एक हजार लड़कों की जनसंख्या पर 940 लड़कियां है। भारत की जनसंख्या का एक बहुत बड़ा हिस्सा गरीबी की चपेट में भी है। यह सर्वविदित है कि जिस देश की आबादी बढ़ती है तो गरीबों की संख्या में भी अप्रत्याशित वृद्धि होती है। जब गरीबी बढ़ती है तो इसके साथ ही कुपोषण और शारीरिक अक्षमता में भी बढ़ोतरी होती है।
जनसंख्या वृद्धि के कारण बेरोजगारी भी बढ़ी है और बढ़ रही है। ऐसी स्थिति में शिक्षित बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध कराना सरकार के लिए कठिन ही नही नामुमकीन प्रतीत होता है। बढ़ती जनसंख्याओ और संसाधनों के अभाव में हर किसी को कौशलयुक्त बना पाना कोई आसान काम नहीं है, और नतीजा यह होता है कि सभी तंत्र पर दबाव बढ़ता है और लोगों को काम नहीं मिल पाता है। जब लोगों के पास बेरोजगारी होती है, तो वे बेहद कठिन परिस्थितियों में जीने को मजबूर होते है। ऐसे में, स्वभाविक रूप से अपराध बढ़ते हैं और युवाओं में आपराधिक व्यवहार हावी होने लगता है।
वर्तमान समय में लोगों के जीवन के हर क्षेत्र में तकनीक का इस्तेमाल तेजी से बढ़ता है और बढ़ता जा रहा है। रोजगार के पुराने तौर-तरीके भी बदलते जा रहे है और बहुत से लोग रोजगारबिहिन जीवन जीने के लिए बाध्य हो रहे है।
जनसंख्या वृद्धि का सीधा संबंध कई सामाजिक समस्याओं से भी है। इसमें निरक्षरता, बाल विवाह और अधिक लड़के पैदा कर, अधिक आमदनी जुटाने जैसे रूढ़ीगत सोच भी शामिल है। कई गरीब परिवार ऐसा मानते हैं कि अधिक बच्चे होने से उनकी आमदनी अधिक होगी।
विगत दशकों में, भारत में, खाद्य उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। लेकिन इस उत्पादन और इसके वितरण का हिसाब, बढ़ती आबादी की जनसंख्या के साथ, संतुलन नहीं बना पा है। परिणामस्वरूप मुद्रास्फीति और उत्पादन की लागत में बढ़ोतरी में देखा जा रहा है। यही स्थिति आवास और अन्य बुनियादी ढांचे की उपलब्धता के मामले में दिखती है।
जनसंख्या वृद्धि से बस्तियों की आबादी घनी हो रही है और शहरों का एक बड़ा हिस्सा झुगी-झोपड़ियों में तब्दील हो रहा है। ऐसी स्थिति में प्राकृतिक संसाधनों, जिसमें खासकर पानी की खपत में भी बड़ी तेजी आयी है। अधिक आबादी के कारण यातायात, शिक्षा, संचार जैसी बुनियादी सुविधाओं पर भी काफी बोझ बढ़त रही है। भोजन और पानी की बढ़ती मांग की आपूर्ति के लिए अधिक जमीन और जल स्रोतों के दोहन किया जा रहा है। अब तो भारत में वन भूमि पर भी अतिक्रमण कर, खेती का चलन, बढ़ता जा रहा है।
जनसंख्या वृद्धि का प्रभाव तो अब ऐसा हो गया है कि अधिक उपज के लिए किसान लोग रसायनों का इस्तेमाल भी बेहतहासा कर रहे हैं, यह चितांकजनक बन गया है। जनसंख्या में तेज बढ़ोतरी, ग्रामीण क्षेत्रों से बडे पैमाने पर शहरों की ओर पालायन, सार्वजनिक स्वास्थ्य की समस्या, शिक्षा का स्तर नीचे उतरना, यह सब इसका परिणाम है।
भारत मृत्युदर को कम कर पाने में कामयाब रहा है, लेकिन जन्मदर के मामले में कामयाब नहीं हो पा रही है। जबकि प्रजनन दर में कमी हुई है परन्तु अन्य देशों की तुलना में यह अभी भी अधिक है।
जनसंख्या वृद्धि के कारण ही स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण का असर, जानलेवा बीमारियों और संक्रमणों का कारण, यौन रोगों का खतरा, वनों का क्षरण, वायु और जल प्रदूषण की वृद्धि, अधिक शिशु मृत्युदर और अत्यधिक गरीबी के कारण भूख जैसी गंभीर समस्याएं, आर्थिक समानता में अवरोध है। ऐसे में आबादी का बढ़ा हिस्सा बेहद खराब स्थितियों में जीवन जीने के लिए विवश हो रहा है।
देखा जाय तो भविष्य में ये चुनौतियां और विकराल हो सकती है। इसके लिए व्यापक जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है ताकि जनसंख्या नियंत्रण के लिए परिवार नियोजन की जानकारी, स्वास्थ्य के बढ़ते खतरे की जानकारी आदि देनी चाहिए। बच्चों की संख्या दो तक सीमित करने पर भी जोर दिया जाना चाहिए।