- जितेन्द्र कुमार सिन्हा
पटना :: वर्तमान समय मे अधिकांश घरों में माता-पिता अपने बच्चों को मोवाईल में कोई पिक्चर या कार्टून लगाकर उसके हाथ में मोबाईल देकर अपने को निश्चिंत कर लेती है और ऐसा करने पर उस बच्चे का मानसिक स्थिति और आदत में बदलाव आ जाता है, जिसके कारण बड़े होते बच्चों में पनपती हिंसक प्रवृति दिनों- दिन चिंता का सबब बनती जा रही है। इस संदर्भ में विशेषज्ञों द्वारा एक तरफ पनपती हिंसक प्रवृति पर शोध किया जा रहा है और दूसरी ओर लंबे समय से यह मंथन चल रहा है कि आखिर बच्चों का बन रहा ऐसा मानस को कैसे ठीक किया जा सकता है या इस पर नकेल कसने के लिए क्या उपाय किए जा सकते है।
विशेषज्ञों का माने तो ज्यादातर अध्ययनों में इलेक्ट्रोनिक उपकरणों पर बच्चों का समय अधिक से अधिक बिताने और इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री को देखने में वयस्थ रहने पर ही जाकर रूक जा रही है। बच्चों के भीतर इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री को देखने के कारण उनके मानस पटल पर हिंसा की जड़े गहराते जा रहा हैं। इसका ताजा उदाहरण लगभग सभी राज्यों से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों में देखने को मिल जाता है। इसी तरह एक घटना उत्तर प्रदेश के लखनऊ में एक बच्चे ने अपनी माँ को सिर्फ इसलिए मार दिया कि उसकी माँ उसे इंटरनेट पर खेलने से रोकती थी। बच्चे को पबजी खेलने की बुरी लत लग गई थी और माँ उसे खेलने से रोकती थी इसलिए उसने माँ को गोली मार दी और दो दिनों तक उसकी लाश को एक कमरे में बंद रखा था। उसके बाद अपने फौज में तैनात अपने पिता को उसने बताया। जबकि इस प्रकार का यह कोई पहली घटा नहीं है। इस तरह के कई ऐसे मामले समाचार पत्र में यदाकदा- अक्सर दिखायी दे देता है, जिनमें बच्चों ने अपनी दादी-नानी, दादा-नाना को जान से मार कर पैसा हड़पने का प्रयास करता है और अपने शौक पूरे करते हैं।
अक्सर बच्चे स्कूलों में अपने सहपाठियों पर हिंसक हमले करते हैं, कभी कभी तो अपहरण कर फिरोती मांगने जैसी कई घटनाओं की जानकारी से संबंधित खबरें पढ़ने को मिल जाती है। इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने में बच्चों द्वारा इंटरनेट वा दिखाये जा रहे सामग्रियों से प्रभावित होकर लूटपाट करने और जान से मार देने तक की घटनाएं को अंजाम दे रहा है।
विगत कुछ वर्षों से बड़े हो रहे बच्चों में नशे की बढ़ती लत को लेकर भी चिंता जताई जाती रही है। नशे की स्थिति में गिरफ्तार हुए बच्चों का मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है और वे हिंसा पर उतारू हो जाते है। सबसे भयावह स्थिति यह है कि इंटरनेट पर खेले जाने वाले खेलों की लगी है लत। इटंरनेट पर कई ऐसे खेल आए हैं, जिनकी लत के शिकार हो कर बच्चों ने खुदकुशी कर लेते हैं या किसी की जान ले लेते हैं। तमाम अध्ययनों से स्पष्ट होता है कि बच्चों द्वारा ज्यादा समय मोबाईल फोन या कम्प्यूटर पर खेलने में बिताने से हैं, जिसकी वजह से बच्चों के शरीर और मन पर बुरा असर पड़ रहा है।
दुनियाँ भर में इस आदत का इलाज करने के लिए अस्पतालों में अलग से विभाग खोले गए है, लेकिन इस आदत में कमी होने की जगह बढ़ोतरी ही हो रही है। बढ़ोतरी होने का मूल कारण यह बताया जा रहा है कि कोरोना संकट के समय जब स्कूल बन्द हुए थे, तो बच्चों को इंटरनेट के माध्यम से कक्षाएं लेना स्कूलों की मजबूरी हो गई थी। इस वजह से माता-पिता ने भी स्मार्ट फोन बच्चों को दे दिए। जिसका परिणाम अब दिखाई पड़ने लगा है कि मोबाईल महज एक संचार उपकरण नही रहा, बल्कि एक घातक हथियार का रूप लेता जा रहा है।
सामान्यतः देखा जाय तो इंटरनेटर पर इस तरह का अनेको (अथाह) सामग्री अपलोड रहता है जिसे कोई भी आसानी से देख सकता है या डाउनलोड कर सकता है, और उस सामग्री का इस्तेमाल भी हर कोई अपने ढंग से कर सकता है या यह कह सकते हैं की वह कर रहा है। लगता है कि बच्चों को इस तरह की चीजें बहुत पंसद होता होगा और इसका दुस्परिणाम उनके मस्तिक में बुरा असर दे रहा है, जबकि यह पूरी तरह वर्जीत होना चाहिए। यह भी सत्य है कि इस संबंध में दुनियाँ भर में चर्चा हो रही है कि कैेसे आपत्तिजनक, बाल और किशोर मन पर बुरा असर डालने वाली सामग्री की उपलब्धता रोकी जाय, लेकिन इसका उपाय अभी तक नहीं निकाला जा सका है। जब तक ऐसा नहीं हो जाता है, बच्चों के मन में जड़े जमाती हिंसक प्रवृति पर अंकुश लगाना कठिन ही बना रहेगा।