- शांभवी पोद्दार
शोर वह ध्वनि है जिसकी निरंतरता और तीव्रता उसे नकारात्मक रूप की तरफ ले जाती है। शोर को मानव मानकों से अगर बांटा जाए तो उसे कई रूपो में देखा जा सकता है, वह शोर जिसे हम सुनना नहीं चाहते और दूसरा वो जो हमें कुछ सुनने नहीं देता।
यहाँ एक तरफ भौतिक शोर की बात हो रही है वहीं शोर का दूसरा स्वरूप मन से है, जहां मन कई तरह की भावनाओं को, एक साथ लेकर आता है। वो पुरानी यादें जिसमें अच्छी और बुरी सारी स्मृतियां शामिल है जिसे इंसान याद नहीं करना चाहता बल्कि वह दूर हो जाना चाहता है, उस स्मृति रूपी शोर से क्योंकि वो शोर इंसान को वापस अतीत की यादों में लेकर जाना चाहता है, जिस अतीत का अब कोई वजूद नहीं है क्योंकि वह अतीत अब इंसान का इतिहास बन चुका है।
मन के शोर का ध्यान तोड़ने की क्षमता भौतिक तीव्रता वाला शोर रखता है जिसे मानव ने फैक्टरी,मोटर और विलासिता से भरी चीजों को जन्म देकर किया है।आखिर ऐसा क्या है? इस शोर में कि, हम इस से दूर होने के बजाय इसकी ही गिरफ्त में आते जा रहे हैं।
इसका उत्तर हम मानव से बेहतर कौन दे सकता है, क्योंकि प्रकृति ने तो हमारे लिए जिस शोर को जन्म दिया था उसमें प्रेम,शांति और संतुष्टि का भाव था, उसमें कर्कश तीव्रता नहीं थी उसमें मिठास थी। जो इंसान को छन भर में सुकून देने का काम करती है चाहे वह पक्षियों की आवाज का शोर हो,या पवन के तेज झोंके, बारिश की झमाझम हो या समुद्र की लहरें ।
हम मानव कितने शक्तिशाली हो गए हैं कि, हमने अपनी तीव्रता वाले शोर से इस सभी मध्यम गति वाले शोर को ढक दिया है, इस तरह हम मानव होने के नाते कई गुना शक्तिशाली और सब प्राणियों में सबसे ज्यादा बुद्धिजीवी हुए! आज शोर अपने वास्तविक स्वरूप में नहीं है क्योंकि उसमें मानव ने अपनी सुविधा के अनुसार परिवर्तन किए हैं परिणाम यह हुआ है कि, मानव खुद उस परिवर्तन को हजम नहीं कर पा रहा है और खुद उसे ध्वनि प्रदूषण की संज्ञा दे रहा है।
अब मानव की ये जरूरत बन चुकी है कि, वह प्राकृतिक ध्वनि को तीव्र रखने की कोशिश करें और मानव निर्मित शोर को कम करें जिसका सबसे बेहतर उपाय वृक्षारोपण है।