- प्रो. मंजुला राणा*
हिमालयी राज्य उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित केदारनाथ धाम विश्व की आस्था एवं आध्यात्मिक चेतना का पर्याय है, जहां जनमानस देवत्व की प्राप्ति के साथ-साथ देवभूमि में कण-कण में भगवान शंकर की उपस्थिति का आभास पाता है। यह स्थान धार्मिक महत्व के साथ-साथ अपनी प्राकृतिक आभा के लिए भी वैश्विक पटल पर भारत के आध्यात्मिक ऐश्वर्य एवं सौंदर्य को अंकित करता है। इसी सुरम्य परिवेश में भगवान भोलेनाथ का प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग केदारनाथ स्थित है। प्रसिद्ध 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक अपने रुद्र रूप में भगवान शिव 3584 मीटर की ऊँचाई पर स्थित केदारनाथ धाम में स्वयंभू शिव के रूप में इसी स्थान पर विराजमान रहते हैं। सर्वप्रथम आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर का जीर्णोधार करवाया था। इसी रूद्र रूप की परिकल्पना के कारण इस संपूर्ण क्षेत्र को रुद्रप्रयाग कहा गया है। हिमाच्छादित केदारनाथ धाम के कपाट अप्रैल-मई माह में ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ द्वारा विधि विधान से घोषित तिथि के उपरांत खुलते हैं तथा दीपावली के पश्चात बंद कर दिए जाते हैं। शीतकाल में 06 माह भगवान केदारनाथ की चल-विग्रह डोली एवं दंडी ऊखीमठ में पूजा-अर्चना हेतु स्थापित की जाती है। इस धाम का तापमान शीत ऋतु में शून्य से बहुत नीचे पहुंच जाता है।
यह मंदिर तीनों ओर से उच्च हिमालयी पर्वत श्रृंखलाओं से अलंकृत है। एक तरफ से करीब 22 हजार फुट ऊँचा केदारनाथ, दूसरी तरफ 21 हजार 600 फुट ऊँचा खर्चकुंड तथा तीसरी ओर 22 हजार 700 फुट ऊँचा भरतकुंड इस धाम को आच्छादित किए हुए हैं। इसी अलौकिक सुरक्षा के साथ-साथ इसे मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्ण गौरी जैसी पुण्यसलिलाओं का साहचर्य भी प्राप्त है। वस्तुतः, ये नदियां कल्याणकारी माँ के समान अहर्निश इस मंदिर की सेवा में समर्पित हैं। पांडव वंशीय जन्मेजय द्वारा इसे कत्यूरी शैली में बनाया गया है।
स्कंद पुराण में वर्णित पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नर-नारायण ने हिमालय के केदारश्रृंग(पर्वत) पर पार्थिव लिंग बनाकर अनेक वर्षों तक तपस्या की, उनकी सघन तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव ने उन्हें दर्शन दिए तथा उन्हीं नर-नारायण के विशिष्ट आग्रह से भगवान शिव ज्योतिर्लिंग स्वरूप में वहीं पर विराजमान हो गए।
इसी क्रम में पुराणों में वर्णित पंच केदार की कथा के आख्यान से भी इस धाम के महत्व को समझा जा सकता है। लोक में व्याप्त अवधारणा के अनुसार महाभारत के युद्ध में विजयी होने के उपरांत पांडव अपने सगोत्रियों की हत्या के पाप से मुक्त होना चाहते थे तथा ऋषिवर व्यास के परामर्श से भगवान शिव की शरण ही उन्हें पाप मुक्ति दिला सकती थी। इसी मुक्ति की कामना के साथ पांडवों ने बद्रीनाथ धाम के लिए प्रस्थान किया। भगवान शंकर ने पांडवों की परीक्षा लेनी चाही और वे अंतर्ध्यान होकर केदार जा बसे। पांडवों को जब पता चला तो वे भी उनके पीछे-पीछे केदार पर्वत पर पहुंच गए। भगवान शिव ने पांडवों को आते देख भैंस का रूप धारण कर लिया और पशुओं के झुंड में जा मिले। तब पांडवों ने भगवान के दर्शन पाने के लिए एक योजना बनाई और भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर अपने दोनों पैर केदार पर्वत के दोनों ओर फैला दिए। कहा जाता है कि अन्य सब पशु तो भीम के पैरों के नीचे से निकल गए लेकिन शंकर जी रूपी भैंस पैरों के नीचे से निकलने को तैयार नहीं हुआ। जब भीम ने उस भैंस को जबरदस्ती पकड़ना चाहा तो भोलेनाथ विशाल रूप धारण कर धरती में समाने लगे। उसी क्षण भीम ने बलात भैंस की पीठ का भाग कस कर पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ़ संकल्प देखकर प्रसन्न हुए और उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पापमुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर भैंस की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं। केदार शब्द का अर्थ दलदल के रूप में भी माना जाता है अर्थात् वह स्थान जो मनुष्य को सांसारिक दलदल से मुक्ति दिलाता है।
पड़ोसी राष्ट्र नेपाल में स्थित पशुपतिनाथ का सीधा संबंध केदारनाथ से माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार यह ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड में स्थित केदारनाथ का ही हिस्सा है अर्थात् धड़ से नीचे का भाग केदार शिव भारत में तथा ऊपरी भाग पशुपतिनाथ के रूप में पूजनीय है। धार्मिक सद्भावना के साथ विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि भारतवर्ष के धार्मिक स्थलों ने भी पारस्परिक प्रेम एवं सद्भाव को जीवित रखने के लिए अपनी शास्त्रगत मान्यताओं का दूसरे देशों के साथ अद्भुत संयोग स्थापित किया है। अनेकानेक जनश्रुतियों ने मौखिक तथा लिखित रूप से लोकतत्वों के साथ मिलकर इस धाम की महिमा गायी है।
यहां की वादियों की अलौकिक शांति संपूर्ण राष्ट्र ही नहीं अपितु विश्व के मनीषियों-साधु संतों को आध्यात्म की खोज के लिए आमंत्रित करती है। यहां स्थित उड्यारों(गुफा) में अनेक चिंतकों ने ध्यानावस्थित होकर शारीरिक एवं मानसिक शांति प्राप्त की है। वर्तमान में केंद्र एवं प्रदेश सरकार के प्रयासों द्वारा केदारनाथ धाम में पर्याप्त सुविधाओं की व्यवस्था की गई है। यात्री अपनी क्षमता के अनुसार हवाई यात्रा अथवा सड़क द्वारा बहुत सुगमता से केदारनाथ धाम पहुंच सकते हैं। हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट में इस धाम को सर्वजन सुलभ बनाने का संकल्प लिया है तथा इसी के अनुरूप यहां समस्त सुगम साधनों का संचयन करवाया जा चुका है। यही कारण है कि प्रतिवर्ष करोड़ों की संख्या में भक्तजन यहां आकर देवाधिदेव के दर्शन करके शिवमय होना चाहते हैं। सचमुच अद्भुत है केदारनाथ धाम की महिमा और अलौकिक है इस स्थान का सौंदर्य।
*(लेखक: प्रो. मंजुला राणा, हिंदी- विभाग, हेमवतीनंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर गढ़वाल)