ट्रैफिक सिग्नल की हरी बत्ती

Offbeat

  • प्रो डा.अजय कुमार झा

…….शहर के उस व्यस्त चौराहे पर ट्रैफिक सिग्नल की लाल बत्ती अभी अभी ही जली थी।तेज गति से चलती आ रही सभी गाड़ियां बस तत्क्षण ही वहां रूकी थीं।

अभिमन्यु अपनी पत्नी निवेदिता के साथ अपनी गाड़ी में रूकी हुई गाड़ियों की कतार में सबसे आगे थे।

तभी भीख मांगने वाले लड़कों का एक छोटा-सा झुंड दौड़ता हुआ अभिमन्यु की गाड़ी तक भी आ पहुंचा।वे सभी उनकी गाड़ी का शीशा लगातार नॉक करते हुए खाने क़ो कुछ पैसे मांग रहे थे।किसी के हाथ कटे थे। किसी के कपड़े फटे थे। कोई गिड़गिड़ा रहा था। तो कोई अपने ही तरीके से अपना मुंह बनाते हुए अभिमन्यु को विश्वास दिलाने में लगा था कि वह सचमुच भूखा था।

अभिमन्यु कभी उन्हें देखता,और कभी अपनी नज़र फेर कर सीधे ट्रैफिक सिग्नल पर टिका देता। उसने अपनी गाड़ी का शीशा नहीं गिराया….।

यह रोजमर्रा की बात थी। ट्रैफिक के हर मोड़ पर हर दिन की यही कहानी थी। अभिमन्यु भी इसका अभ्यस्त हो चुका था। और संभवतः दूसरी गाड़ी वाले भी। भीख मांगने वाले छोटे-बड़े बच्चों का छोटा-छोटा अलग-अलग झुंड हर गाड़ी के समीप कुछ पैसे पाने के इंतजार में खड़ा था।

पर किसी की गाड़ी का शीशा नीचे नहीं गिरा। तभी ट्रैफिक सिग्नल की “हरी बत्ती” जल गई।

सभी गाड़ियां निकल गईं…..।

किसी बच्चे को किसी गाड़ीवाले से संभवतः कुछ भी नहीं मिला…..।.

उन जाती हुई गाड़ियों को देखते हुए वे सभी बच्चे ट्रैफिक लाइट की उसी “लाल बत्ती” का पुनः अगली बार जलने का इंतजार करने लगे……

(प्रो डा. अजय कुमार झा द्वारा 22 अगस्त 2021को लिखित लघु कथा आपको लोगो के लिए प्रस्तुत है तथा इसपर आपकी एक निष्पक्ष प्रतिक्रिया अपेक्षित)

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