- जितेन्द्र कुमार सिन्हा
यूएसए, कैलिफोर्निया: 6 नवंबर 2024 :: कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू होकर कार्तिक शुक्ल पक्ष सप्तमी पर समाप्त होने वाली छठ पूजा जिसे लोग सूर्य षष्ठी के नाम से भी जानते है। इस वर्ष छठ पर्व 05 नवम्बर मंगलवार से शुरू होकर 08 नवम्बर तक चलेगा।
कार्तिक माह के चतुर्थी तिथि यानि 05 नवम्बर मंगलवार को छठ पर्व के पहले दिन नहाय खाय, कार्तिक माह के पंचमी तिथि यानि 06 नवम्बर बुधवार को खरना, कार्तिक माह के षष्ठी तिथि यानि 07 नवम्बर वृहस्पतिवार को पहली अर्घ्य डूबते सूर्य को और कार्तिक माह के सप्तमी तिथि यानि 08 नवम्बर शुक्रवार को दूसरी अर्घ्य उगते सूर्य को दिया जाएगा और इसी दिन उसके बाद व्रत का पारण कर पर्व का समापन किया जाएगा।
अमेरिका समेत कई देशों में सूर्य उपासना की परंपरा है:
अमेरिका के कैलिफोर्निया, लॉस एंजिल्स में प्रशांत महासागर के तट पर पटना, बिहार के ई. राजीव कुमार के नेतृत्व में बिहार झारखंड फ्रेंड्स क्लब के द्वारा छठ पूजा का आयोजन किया गया है, जिसमें कुल बारह (12) छठ व्रती इस महापर्व में शामिल होंगे तथा दो सौ से ज्यादा भारतीय और अन्य इस लोक आस्था के महान पर्व में शामिल होकर भगवान सूर्यनारायण का पूजा, अर्चना और आशीर्वाद प्राप्त करेंगे। इनके सहयोग के लिए राजीव सिंह, राजीव कुमार और वाणी आदि तत्पर हैं।
अमेरिका में खुशहाली के देवता हैं भगवान सूर्यनारायण: अमेरिकी गाथाओं के अनुसार विश्वभर में कई युगों तक अंधकार छाया रहा था, जिसके कारण पृथ्वी पर जीवन असंभव था। उस काल में सूर्यदेव स्वर्ग में निवास करते थे। मध्य अमेरिकी देशों के मूल निवासियों (आजटेक) लोगों ने विश्व के कल्याणार्थ अपने प्राणों की बलि देकर सूर्यदेव को प्रसन्न किया। तात्पर्य यह कि इससे पूर्व चार बार ब्रह्माण्ड में सूर्य का प्राकट्य और अवसान हो चुका है। अमेरिका में ‘तोनतिहू’ यानी सूर्य अपनी काया से प्रकाश की किरणें निकालते हैं और आजटेक लोगों की रक्षा करते हैं। वे फसलों को खुशहाली और मनुष्यों को जीवन प्रदान करते हैं।
छठ महापर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है तथा चातुर्मास का अंतिम त्योहार है। इसके पहले दिन ‘नहाय खाय’ में व्रती नहा- धोकर शुद्ध- सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं।दूसरे दिन ‘खरना’ में व्रतधारी दिन भर उपवास करके छठी माई का पूजन कर गुड़ से बनी खीर एवं पूरी या रोटी का प्रसाद स्वयं भी ग्रहण करते हैं और श्रद्धालुओं में भी वितरित करते हैं।तीसरे दिन ‘पहला अर्घ्य’ होता है, जब व्रतधारी जल में खड़े होकर अस्ताचलगामी भगवान श्री सूर्य नारायण को अर्घ्य देते हैं। चौथे दिन ‘दूसरा अर्घ्य’ होता है,जब उदीयमान भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रती श्रद्धालुओं में ठेकुआ,फल, सब्जियां, ईख इत्यादि का प्रसाद वितरित करते हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठ-पूजा को श्रद्धापूर्वक करने से सुख-समृद्धि एवं आरोग्य की प्राप्ति होती है।इस वर्ष यह 5 से 8नवंबर तक मनाया जा रहा है।
सूर्योपासना का महत्व-
भारतीय संस्कृति में उद्भव काल से ही सूर्योपासना का बड़ा महत्व रहा है।ऋग्वैदिक युग में भगवान सूर्य को जीवों की चराचर आत्मा मानकर उनकी उपासना की जाती थी। आज भी हिंदुओं के सारे तीज- त्योहार सूर्य के संवत्सर चक्र के अनुसार ही मनाए जाते हैं।
गौरतलब है कि भारत के आदिकालीन सूर्यवंशी भरत राजाओं का यह मुख्य पर्व था। मगध और आनर्त प्रदेशों के राजनीतिक इतिहास के साथ भी छठ- पूजा की ऐतिहासिक कडि़यां जुड़ी हुई हैं। वैसे उत्तराखंड का उत्तरायण पर्व, केरल का ओणम,कर्नाटक की रथ-सप्तमी तथा बिहार का छठ महापर्व मूलतः सूर्य- संस्कृति की उपासना के द्योतक हैं। चार दिनों तक चलने वाले छठ-पूजा का आयोजन तब होता है,जब भगवान श्री सूर्य नारायण दक्षिणायन होते हैं।
सूर्योपासना की परंपरा-
सूर्य भगवान की उपासना का स्रोत भारतवर्ष रहा है। हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा प्रदत्त सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व आरंभ में मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता था,परंतु अब यह विराट् रूप ले चुका है, जिसके मानने और मनाने वाले संपूर्ण विश्व में पाए जाते हैं। वैसे भगवान सूर्य की उपासना की परंपरा किसी न किसी रूप में दुनिया भर की सभ्यताओं और संस्कृतियों में रही है।
मान्यता है कि सिकंदर के अभियानों के पश्चात सीरिया में सूर्य- पूजा प्रारंभ हुई, जिसका प्रभाव पड़ोसी देश ईरान पर भी पड़ा। तत्पश्चात ईरान से होते हुए सूर्योपासना की परंपरा रोम तक पहुंची।
इसके अलावा रोम, जापान, मिस्र, ईरान, यूनान आदि देशों में सूर्य उपासना की जाती है।
भगवान सूर्य के लिए की जाने वाली इस अनुष्ठान में 36 घंटे का निर्जला व्रत रखा जाता है। इसमें पवित्र स्नान, पीने के पानी से परहेज करना, कुछ अनुष्ठान करने के लिए पानी में खड़े होना, डूबते और उगते भगवान सूर्य से प्रार्थना करना, पहली अर्घ्य डूबते हुए सूर्य को देना और दूसरी अर्घ्य उगते सूर्य को देना शामिल रहता है। मान्यता है कि यह व्रत भगवान सूर्य को धन्यवाद देने और संतान के लिए खास रूप से मनाया जाता है।
इस वर्ष खरना का शुभ मुहूर्त 06 नवम्बर को शाम 5 बजकर 29 मिनट से 7 बजकर 48 मिनट तक है। 07 नवम्बर वृहस्पतिवार को पहली अर्घ्य डूबते सूर्य का यानि सूर्यास्त का समय शाम 5 बजकर 29 मिनट है और 08 नवम्बर शुक्रवार को दूसरी अर्घ्य उगते सूर्य यानि सूर्योदय का समय सुबह 6 बजकर 32 मिनट है।
(साभार: आदित्य झा एवं जितेन्द्र कुमार सिन्हा संयुक्त)