दीपोत्सव: आत्म ज्योति और शुभ – संकल्प का प्रतीक है

Yoga & Spirituality

लेखक: अवधेश झा

शुभं करोति कल्याणमारोग्यं धनसंपदा ।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते ॥
दीपज्योतिः परब्रह्म दीपज्योतिर्जनार्दनः ।
दीपो हरतु मे पापं दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते ॥
मैं दीपक की रोशनी को नमस्कार करता हूं जो शुभता, समृद्धि, अच्छा स्वास्थ्य, प्रचुर धन और संपत्ति और बुद्धि के शत्रु (शत्रु भावनाओं) का विनाश करती है। मैं दीपक की रोशनी को नमस्कार करता हूं जो सर्वोच्च ब्रह्म का प्रतिनिधित्व करता है, जो जनार्दन (श्री विष्णु) का प्रतिनिधित्व करता है। दीपक की रोशनी मेरे पापों को दूर कर दे।
दीपावली, दीपों के प्रकाश का उत्सव है। दीपक शुभता का प्रतीक है। इसलिए, इसे शुभ ज्योति कहते हैं। दीपक में जो प्रकाश है, वह शुभता, समृद्धि, आरोग्य, धन, ऐश्वर्य और शुद्ध बुद्धि का प्रतीक है। इस प्रकाश से समस्त अज्ञानता के अंधकार का नाश होता है। प्रकाश हमें हमारे अनुकूल परिस्थिति और सहजता का बोध कराता है। क्योंकि, हम सभी में जो आत्मा की ज्योति है, वह स्वयं प्रकाश आत्मा के रूप में विद्यमान है तथा वह परम प्रकाश ही है। इसलिए, यह दीपक आत्म ज्योति का ही प्रतीक है। प्रत्येक अवसर (सुबह और संध्या का दीपक, आरती, पूजा, यज्ञ आदि कर्म) पर जो दीपक जलाया जाता है, वह आत्मा (ब्रह्म) के प्रतीक/साक्ष्य रूप उपस्थित रहते हैं। पांच महाभूतों में एक अग्नि स्वरूप दीपक हमारे जीवन का अंतिम साथी भी है, जो अपने ही तेज में हमें लीन कर लेता है। इसलिए, दीपक में हमारी तरह ही पांच महाभूतों की उपस्थिति है। जैसे पृथ्वी से दिया का निर्माण हुआ है, जल तत्व से प्रज्वलन, अग्नि स्वयं लौ है और वायु इसकी स्थिति तथा उसके ऊपर सर्वत्र आकाश है। उसी तरह से जैसे हमारा यह स्थूल शरीर भी एक दीपक ही है, जिसमें नित्य, निरंतर आत्मा का प्रकाश स्थित रहता है। दिया में जैसे लौ या प्रकाश का महत्व है, उसी तरह से शरीर में आत्मा का महत्व है। इसलिए, यह प्रकाश (ब्रह्म) का प्रतिनिधि करता है और पर ब्रह्म भगवान विष्णु का निवास स्थान है।
आदि शक्ति माता स्वरूप में महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती हमारे जीवन को धन शक्ति, पुरुषार्थ शक्ति और ज्ञान शक्ति से संपन्न बनाती हैं। धन से संसार के समस्त मनोकामना एवं सकल मनोरथ पूर्ण होती है। पुरुषार्थ शक्ति से व्यक्तित्व का निर्माण तथा जीवन में अपने मन, कर्म और वचन पर स्थित रहकर अपने धर्म, धन और संसार की रक्षा कर सकते है तथा ज्ञान और बुद्धि शक्ति से अपने जीवन को उत्तम बनाते हैं तथा मुक्ति की मार्ग भी प्रशस्त करते हैं। धन भी मन के संकल्प और विकल्प से ही प्रकट होता है। जिसका भौतिक या स्थूल रूप हम अपने धर्म पालन और भोग में उपयोग करते हैं।
धन जो धर्म से तथा धर्म के पालन हेतु अर्जित किया गया है, वह “धन” लक्ष्मी हैं। वह ब्रह्म स्वरूपा माता लक्ष्मी समस्त भूतों में विद्यमान हैं। या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मी रूपेण संस्थिता, नमस्त्यै नमस्त्यै नमस्त्यै नमस्त्यै नमों नम:। उन्हें कोटि कोटि प्रणाम है। बारंबार प्रणाम है। मनुष्य में जो धन के उपार्जन की प्रेरणा और बुद्धि का स्वरूप है, वह माता लक्ष्मी हैं। क्योंकि, धन साधना भी है और आराधना भी। धन की अधिष्ठिता माता लक्ष्मी हमें धन के उपार्जन हेतु सूक्ष्म बुद्धि और सन्मार्ग प्रदान करती हैं।
महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥
अर्थ: हम विष्णु पत्नी महालक्ष्मी को जानते हैं तथा उनका ध्यान करते हैं। वे लक्ष्मीजी सन्मार्ग पर चलने के लिए हमें प्रेरणा प्रदान करें।
धन, त्रिभुवन में भिन्न भिन्न रूपों में आवश्यक है। इसलिए, माता लक्ष्मी को धन और ऐश्वर्य की कामना से उनका नित्य निरंतर पूजा, पाठ, जाप और ध्यान आवश्यक है। भगवान विष्णु के मन के अनुकूल आचरण करनेवाली! कमल के समान मुखवाली माता से लौकिक – पारलौकिक दोनों तरह की कृपा प्राप्त की जा सकती है।
पद्मानने पद्मविपद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि।
विश्वप्रिये विष्णुमनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सं नि धत्स्व ॥
अर्थ: कमल के समान मुखवाली ! कमलदल पर अपने चरणकमल रखनेवाली ! कमल में प्रीति रखनेवाली ! कमलदल के समान विशाल नेत्रोंवाली ! समग्र संसार के लिये प्रिय ! भगवान विष्णु के मन के अनुकूल आचरण करनेवाली ! आप अपने चरण कमल को मेरे हृदय में स्थापित करें।
वास्तव में, माता का चरण कमल अगर हमारे हृदय में स्थापित हो जाएं, तो माता लक्ष्मी धन रूप में और भगवान विष्णु पुरुषार्थ रूप में हमारे हृदय आकाश में स्थित हो जायेंगे, जिससे हजारों इंद्र के सुख की अनुभूति होगा। माता लक्ष्मी संयुक्त भगवान विष्णु मंत्र सर्व कल्याणकारी है: “ॐ ह्रीं ह्रीं श्री लक्ष्मी वासुदेवाय नम:”। माता लक्ष्मी का आवाह्न, भगवान विष्णु की ही आवाह्न है। जहां माता दीपक का दीप, बाती और विशुद्ध घी हैं, वही भगवान विष्णु लौ, रोशनी और प्रकाश हैं। इसलिए, पालन करने वाली माता “पद्माक्षि” का वंदन तो सर्वदा उचित और हितकारी है।
पद्मानने पद्मऊरु पद्माक्षि पद्मसम्भवे।
तन्मे भजसि पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम् ॥
अर्थ: कमल के समान मुखमण्डल वाली ! कमल के समान ऊरुप्रदेश वाली ! कमल के समान नेत्रोंवाली ! कमल से आविर्भूत होनेवाली ! पद्माक्षि ! आप उसी प्रकार मेरा पालन करें, जिससे मुझे सुख प्राप्त हो।
माता लक्ष्मी की प्रसन्नता से सर्वमंगल सुनिश्चित हो जाता है। माता की आराधना और कृपा दृष्टि त्रिलोक की ऐश्वर्य प्रदान करनेवाली है। इसलिए, माता लक्ष्मी कोटि प्रणाम है।
सरसिजनिलये सरोजहस्ते,धवलतरांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे,त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥
अर्थ: कमलवासिनी, हाथ में कमल धारण करनेवाली, अत्यन्त धवल वस्त्र, गन्धानुलेप तथा पुष्पहार से सुशोभित होनेवाली, भगवान विष्णु की प्रिया लावण्यमयी तथा त्रिलोकी को ऐश्वर्य प्रदान करनेवाली हे भगवति ! मुझपर प्रसन्न होइये। माता ही भगवान विष्णु की भार्या, भूदेवी तथा भू मंडल की अधिष्ठिता हैं अर्थात पृथ्वी की धन और ऐश्वर्य बिना माता के कृपा से संभव नहीं है। इसलिए, क्षमास्वरूपिणी माता को बारंबार नमस्कार है।
विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम्।
लक्ष्मीं प्रियसखीं भूमिं नमाम्यच्युतवल्लभाम् ॥
अर्थ: भगवान विष्णु की भार्या, क्षमास्वरूपिणी, माधवी, माधवप्रिया, प्रियसखी, अच्युतवल्लभा, भूदेवी भगवती लक्ष्मी को मैं नमस्कार करता हूँ। माता लक्ष्मी आरोग्य प्रदान करने वाली तथा समस्त ऋण, रोग आदि शारीरिक, मानसिक और भौतिक ताप हरने वाली हैं। इसलिए, माता की प्रार्थना फलदायी है।
ऋणरोगादिदारिद्र्यपापक्षुदपमृत्यवः।
भयशोकमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥
अर्थ: ऋण, रोग, दरिद्रता, पाप, क्षुधा, अपमृत्यु, भय, शोक तथा मानसिक ताप आदि – ये सभी मेरी बाधाएँ सदा के लिये नष्ट हो जाएँ। माता महालक्ष्मी ओज, आयुष्य, आरोग्य, धन – धान्य, पुत्र और दीर्घ जीवन प्रदान करती हैं। इसलिए, मातेश्वरी महालक्ष्मी को बारंबार प्रणाम है।
श्रीर्वर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधाच्छोभमानं महीयते।
धनं धान्यं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः ॥
अर्थ: भगवती महालक्ष्मी मानव के लिये ओज, आयुष्य, आरोग्य, धन-धान्य, पशु, अनेक पुत्रों की प्राप्ति तथा सौ वर्ष के दीर्घ जीवन का विधान करें और मानव इनसे मण्डित होकर प्रतिष्ठा प्राप्त करे। “श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमलवासिन्यै स्वाहा।” हे माता महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती स्वरूप में विद्यमान आपको कोटि कोटि नमन।

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