– जितेन्द्र कुमार सिन्हा
पटना :: राजनीति महकमे में दिन प्रतिदिन उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है। कहीं मुख्यमंत्री पाला बदलते है तो कहीं इडी के मामले में उलझे हुए है। वही मंत्री और विधायक के मामले में पार्टी के लोग आरोप प्रत्यारोप लगा रहे है, तो कहीं लोग पार्टी बदल रहे हैं, दवे जुवान में कहीं विधायकों को रिश्वत देकर लुभाने की बात सामने आ रही है। इसी बीच पर्वतीय राज्य उत्तराखंड ने समान नागरिक संहिता लागू कर एक इतिहास बना दिया, इस प्रकार उत्तराखंड समान नागरिक संहिता लागू करने वाले देश का पहला राज्य बन गया। वैसे तो गोवा देश का पहला राज्य है, जहां पुर्तगालियों द्वारा लागू किया गया समान नागरिक संहिता आज भी लागू है और अभी भी चल रही है। अब असम और कुछ अन्य राज्यों में भी समान नागरिक संहिता लागू करने की कवायद शुरू होने वाली है।
देखा जाय तो भारतीय जनता पार्टी जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने, तीन तलाक और अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण करने के बाद, अब उनकी मुख्य एजेंडा एक समान नागरिक संहिता है। वर्ष 2024 में लोक सभा चुनाव होने वाली है और वर्तमान केन्द्र सरकार को शिकस्त देने के लिए महागठबंधन बनाई गई है। इस महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर आपस में अबतक कोई फैसला नहीं हो सका है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने यह कह दिया है कि उनकी पार्टी टीएमसी पूरी बंगाल में अकेला चुनाव लड़ेगा, वहीं पंजाब में आम आदमी पार्टी ने भी कह दिया है कि पंजाब में उनकी पार्टी अकेला चुनाव लड़ेगा, मुंबई में भी शिव सेना (उद्यव ठाकरे) ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ना चाह रही हैं। महागठबंधन से फारूक अब्दुल्ला ने भी अपने को अलग कर लिया है। ऐसी स्थिति में महागठवंधन में मतभेद एवं टूट चल रहा है। जदयू के नीतीश कुमार ने महागठबंधन बनाकर संगठित होने का प्रयास किया था उस समय नीतीश कुमार की पार्टी भारतीय जनता पार्टी से अलग थी लेकिन वर्तमान समय में जदयू और नीतीश कुमार भारतीय जनता पार्टी के साथ है। इस प्रकार यह कहना उचित होगा कि महागठबंधन टूट गई है।
केन्द्र की एनडीए सरकार को पटकनी देने के लिए अब विपक्षी पार्टियों द्वारा अन्नदाताओं के कंधों का सहारा लिया जा रहा है। किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल का कहना है कि नरेन्द्र मोदी का popularity graph राम मंदिर के बाद बहुत ऊपर चला गया हैं, हमें उसे नीचे लाना है, अब समय बहुत कम रह गया है, हमें कैसे भी उसे नीचे लाना है। यह किसान आंदोलन नहीं, बल्कि हिंसक टकराव लगता है। क्योंकि 2500 ट्रैक्टर और अन्य निजी गाड़ियाँ पंजाब से पहुँची है, मजबूरन पुलिस को ड्रोन का इस्तेमाल करना पर रहा है और आंसू गैस के गोले दागने पर रहे हैं।
देश की सभी राजनीतिक दल अपने अपने स्वार्थ में लगे हैं। जब कभी भी उन पर या उनकी पार्टी पर संकट के बादल मंडराने लगते है, तब उन्हें अपना समाज, अपनी बिरादरी, अपनी जाति और फिर देश याद आने लगता है। इसी संदर्भ में विपक्ष के कई दलों ने मिलकर महागठबंधन बनाया, जिसमें सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है। हर कोई अपने हिसाब से गठबंधन को चलाना चाहता है। जिनकी स्वार्थ पूरी नहीं हो रहा है, उनमें अजीब तरह की बेचैनी देखी जा रही है। नतीजा महागठबंधन से जुड़े सभी राजनीतिक दल यह मानकर चलने लगे है कि 2024 में नरेन्द्र मोदी से जीत पाना आसान नहीं है।
काग्रेस के पास भी अब कोई दृष्टि- विजन नहीं रह गया है। इसलिए कांग्रेस की सोच और राजनीतिक समझ को लगता है कि लकवा मार गया है। वह उदासीन होकर सियासत को अजाम देने में लग गई है ऐसा दिख रहा है। अब ऐसे में काग्रेस की कश्ती 2024 में किस करबट लगेगी यह भी एक प्रश्न बन गया है। लगता है कि कांग्रेस के हाथ से सुबा भी निकला और उसके मन से चुनाव जीतने का मंसूबा भी निकल गया है। कांग्रेस लड़ाई से पहले पराजित दिख रही है।
बंगलादेश, इंडोनेशिया, अजर बैजान, जर्मनी, फ्रांस, अमेरिका, कनाडा सहित अन्य देशों में समान नागरिक संहिता जैसे प्रावधान लागू है, लेकिन कहीं हाय तौबा नहीं मचा है। भारत में समान नागरिक संहिता लागू होने के नाम से ही हाय तौबा मचा हुआ है, जबकि भारत के संविधान में समान नागरिक संहिता की बात कही गई है। समान नागरिक संहिता लागू होने पर एक बहुप्रतीक्षित कानूनी सुधार होगा, जिसमें है विवाह पंजीकरण, बाल अभिरक्षा, तलाक, संपत्ति अधिकार, अंतर राज्य संपत्ति अधिकार, महिलाओं, बच्चों, विकलांगों के हितों की, पैतृक संपति के मामले में लड़कियों को समान अधिकार देने जैसे कानूनों में धर्म को ध्यान में ना रखते हुए एकरूपता आएगी। हिन्दू विवाह अधिनियम 1955, हिन्दू जलधिकार अधिनियम 1956, हिन्दू कोड बिल, शरिया मुस्लिम पर्सनल लॉ एक्ट 1937 आदि कानूनों में सुधार के साथ विवादास्पद मुद्दों का निराकरण हो जाएगा। समान नागरिक संहिता लागू होने पर सभी भारतीयों के साथ समान रूप से व्यवहार होगा, लिंग समानता स्थापित होगा, महिलाओं की दशाओं में सुधार में होगा, मौलिक अधिकारों का पालन होगा।
अब देखना होगा कि देश में समान नागरिक संहिता लागू होता है या वोट की वजह से राजनेताओं के स्वार्थ के कारण मकड़ जाल में फँस कर रह जाता है। जबकि विपक्ष की महागठबंधन धारासायी होता जा रहा है और सभी पार्टियों में तालमेल की कमी हो रहा है। इसी बीच छत्तीसगढ़ ने अपने राज्य में समान नागरिक संहिता लागू कर दिया है, वहीं राजनीतिक सियासत के खेल में भारतीय जनता पार्टी का पलड़ा भारी दिख रहा है और अन्य कोई भी दल लोकसभा चुनाव को लेकर गंभीर नजर नहीं आ रहा है। आम लोकसभा चुनाव 2024 के परिणाम तक इंतजार करना होगा कि ऊंट किस करवट बैठती है। ऐसे भी कहा जाता है कि सब्र का फल मीठा होता है।