- जितेन्द्र कुमार सिन्हा
पटना :: ‘शरिया (इस्लामी) कानून के अनुसार मुसलमान परिवार में विवाह के उपरांत धर्मांतरित हिन्दू महिलओं का उनकी संपत्ति में और अन्यत्र भी कोई अधिकार नहीं होता है। लेकिन हिन्दू कानून के अनुसार विवाह उपरांत भी हिन्दू महिलाओं को अनेको अधिकार होता हैं।
विभिन्न प्रकार के जिहाद के जैसा ही ‘लव जिहाद‘ भी जिहादियों द्वारा चलाया जा रहा आय दिन समाचारों में पढ़ा जाता है, इससे ऐसा लगता है कि हिन्दू समाज के विरुद्ध एक प्रकार का ‘युद्ध‘ चल रहा है। ‘लव जिहाद‘ में सामान्य घर की हिन्दू युवतियों और महिलाओं को एक षडयंत्र के तहत इस्लाम धर्मालम्बी लोग अपना नाम हिन्दू रखकर, अपने को हिन्दू बताकर विवाह कर लेता है। अब तो लव जिहाद के मकड़जाल में, खेल जगत, सिनेमा जगत, कालेज -स्कूल के हिन्दू युवतियों और लड़कियाँ फँस चुकी है और फँसाई जा रही है। लवजिहाद के बाद इन हिन्दू युवतियों और लड़कियों का भयानक शोषण किया जाता है। ऐसे हिन्दू युवतियों और लड़कियों को जिहादी संकट को ध्यान में रखकर और धर्मशिक्षा लेकर धर्माचरण करने की आवश्यकता है।
‘लव जिहाद‘ के विरोध में केन्द्र सरकार से लगातार कानून बनाने की माँग उठ रहा है। इतना ही नही, राज्य सरकारों ने भी अपने अपने राज्यों में ‘लव जिहाद‘ विरोधी कानून तैयार करने और लागू करने में लगे हुए है। इसी क्रम में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सरकार ने ‘लव जिहाद‘ विरोधी कानून को लागू भी किया है। गुजरात सरकार भी ‘लव जिहाद’ कानून लागू करने की तैयारी में है।
‘लव जिहाद‘ के कारण केवल भारत की ही नहीं, बल्कि भारत के बाहर की हिन्दू एवं सिख युवतियों का भी धर्मांतरण हुआ है, जिससे हिन्दू परिवार व्यवस्था पर गंभीर परिणाम हुआ है ।
लोगों का कहना है कि ‘लव जिहाद‘ का अस्तित्व नहीं है, फिर भी ‘लव जिहाद‘ विरोधी कानून का विरोध होता रहा है। जबकि ‘लव जिहाद‘ के दूरगामी प्राणघातक परिणाम हो सकते हैं। इसलिए ‘लव जिहाद‘ के माध्यम से हिन्दू युवतियों और महिलाओं का धर्मांतरण को रोकने और ‘लव जिहाद‘ के षड्यंत्र से युवतियों को बचाने में अभिभावकों का दायित्व और धर्मशिक्षा की आवश्यकता है। फिल्मों के माध्यम से भी ‘लव जिहाद‘ को प्रोत्साहन दिया जा रहा है, इसलिए धर्मांतरण विरोधी कानून की भी आवश्यकता है।
‘लव जिहाद‘ के संदर्भ में मुसलमान और धर्मनिरपेक्ष लोग तर्क देते हैं कि ‘विवाह करनेवाली हिन्दू युवती और मुसलमान युवक को किससे विवाह करना है, यह उनका संवैधानिक अधिकार है। लेकिन जब उनके सामने यह कहा जाता है कि ‘समान नागरिक कानून‘, ‘गोहत्या रोकना‘, जैसे अनेक विषय हैं, तब मुसलमान और धर्मनिरपेक्षतावादी संविधान की बात न कर हिन्दू अल्पसंख्यकों की भावनाओ का विचार करें, ऐसी बातें करने लगते हैं । संक्षेप में कहा जाय तो हिन्दुओ की भावनाओ का कहीं भी विचार नहीं किया जाता और सहजता से विषय बदल दिया जाता है ।
हिन्दू युवतियों को चाहिए कि जबतक कानून नहीं बन जाता है तबतक ऐसे विविध संकट का ध्यान रखें और धर्मशिक्षा लेकर ही धर्माचरण पर विचार करें।