मनुष्य के व्यक्तित्व और आध्यात्मिक कारणों से भी होली का महत्व है

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  • जितेन्द्र कुमार सिन्हा

पटना :: प्रदोष व्यापिनी फाल्गुन पूर्णिमा में होलिका दहन करने का प्रावधान है। इस वर्ष पूर्णिमा तिथि 6 मार्च को संध्या 4 बजकर 17 मिनट से शुरु होकर 7 मार्च की शाम 6 बजकर 09 मिनट तक है।

भारत में इस वर्ष दो दिन होली मनाया जायेगा। इस वर्ष जहां सूर्यास्त 6 बज कर 09 मिनट के बाद होगा वहां पर होलिका दहन 6 मार्च को होगा और जहां सूर्यास्त 6बजकर 09 मिनट से पूर्व होगा वहां पर होलिका दहन 7 मार्च को होगा। इस प्रकार होली देश में दो दिन मनाया जायेगा।

6 मार्च को होलिका दहन वाले राज्य राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर पश्चिमी मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल आदि है। यहां 7 मार्च को होली होगी।

7 मार्च को होलिका दहन वाले राज्य पूर्वी उत्तरप्रदेश, पूर्वी मध्य प्रदेश, उत्तर पूर्वी छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, उड़ीसा, असम सहित सभी पूर्वी प्रदेश में 6 मार्च को होलिका दहन होगा इसलिए इन राज्यों में 8 मार्च को होली होगी।

हम सभी लोग जानते हैं कि होली का अर्थ ही होता है रंगों की होली, बुराई पर अच्छाई की होली, दुष्प्रवृत्ति एवं अमंगल विचारों का नाश की होली, अनिष्ट शक्तियों को नष्ट कर ईश्वरीय चैतन्य प्राप्त करने और सदप्रवृत्ति मार्ग दिखाने वाला उत्सव है होली। मनुष्य के व्यक्तित्व, नैसर्गिक, मानसिक और आध्यात्मिक कारणों से भी होली का संबंध को मानते है । आध्यात्मिक साधना में अग्रसर होने हेतु बल प्राप्त करने से भी इसे जोड़ा जाता है।

वसंत ऋतु के आगमन और अग्नि देवता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के रूप में भी जाना जाता है, लेकिन भगवान महादेव की नगरी वाराणसी में रंगों की होली के अलावे रंगभरी एकादशी पर चिताभस्म की होली खेली जाती है। मान्यता हैं कि भगवान महादेव के अनन्य भक्त औघड़ संतों हरिश्चन्द्र घाट पर एकत्र हो कर चिता के भस्म (राख) की होली खेलते हैं।

रंगभरी एकादशी को क्रींकुण्ड से काशी तक महाकाल की बारात निकाली जाती है और हरिश्चंद्र घाट पहुँच कर वहां भगवान महादेव के भक्त औघड़ चिता भस्म से होली खेलते हैं। बारात की शोभायात्रा में बग्‍घी, ऊंट, घोड़ा आदि शामिल रहता है और ट्रकाे पर भक्तजन शिव तांडव नृत्य करते हुए नर-मुंड की माला पहने रहते हैं। भगवान महादेव के श्रद्धालु लोग बाबा मशान नाथ का जयकारा लगाते रहते हैं। हर हर महादेव का गगनभेदी जयकारा रास्‍ते भर लगाते रहते हैं। इस प्रकार रंगभरी एकादशी के दिन वाराणसी में लोग मस्ती में सराबोर होकर पूरी निष्ठा एवं हर्षोल्लास के साथ बारात में शामिल होते भाग हैं।

यह भी मान्यता है कि काशी पुराधिपति महादेव बाबा विश्वनाथ रंगभरी एकादशी पर गौरा (माता पार्वती)का गौना (विदाई) करवाने आते हैं और वाराणसी के टेढ़ी नीम से महादेव माता गौरा (पार्वती) का गौना करवा कर श्रीकाशी विश्वनाथ धाम के लिए चल देते हैं। इसी खुशी में भगवान महादेव के भक्त औघड़ संतों ने हरिश्चंद्र घाट पर चिता भस्म की होली खेलते हैं और गाते हुए नाचते रहते हैं भूत पिशाच बटोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी। इस समय जो नाच होता है वह शिव तांडव नृत्य के अंदाज में रहता है।

रंगभरी एकादशी के दिन वाराणसी के रविन्द्रपुरी स्थित भगवान महादेव की कीनाराम स्थली क्रीं कुंड से औघड़ सन्तों के साथ हरिश्चंद्र घाट तक एक विशाल शोभायात्रा निकाली जाती है। इस शोभायात्रा में उस क्षेत्र के लोग महिलाओं के साथ सक्रिय रुप से भाग लेते हैं।

शोभायात्रा में सबसे आगे रथ पर बाबा मशान नाथ के विशाल चित्र रहता है और उसके पीछे महिलाएं और पुरुष शिव तांडव स्त्रोतम का पाठ करते हुए चलते रहे हैं। उसके पीछे रथों पर सवार होकर भगवान के भक्त – संत भस्म की होली खेलते रहते हैं जो लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बना रहता है।

काशी मोक्षदायनी समिति के लोगों का कहना है कि रंगभरी एकादशी पर चिताभस्म की होली खेलने की परम्परा कुछ वर्ष पहले ही शुरु हुआ है। उनका कहना है कि क्रींकुण्ड से काशी के महाकाल की बारात निकाली जाती है और बारात यहाँ से हरिश्चंद्र घाट तक जाता हैं। जहां धधकती चिताओं के बीच चिता भस्म से बाबा के भक्त होली खेलते हैं। शोभायात्रा रविन्द्रपुरी से होकर पद्मश्री चौराहा, शिवाला चौराहा होते हुए हरिश्चंद्र घाट पहुंचती है।, जहां भक्तों के राग विराग का यह दृश्य देखकर घाट पर मौजूद लोग बाबा मशाननाथ और हर-हर महादेव का गगनभेदी उद्घोष भी करते रहते हैं।

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