- जी किशन रेड्डी*
नौ साल पहले जनादेश मिलने के बाद, माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने “कर्म परमो धर्मः” के दर्शन का अनुकरण किया, जो कठिन परिश्रम और ईमानदार इरादे के साथ कड़ी मेहनत करने से सम्बन्धित है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमारे सामने कितनी कठिन चुनौतियां हैं, भारत को “विश्व गुरु” बनाने के सपने के लिए हम अपने मार्ग पर मजबूती से आगे बढ़ रहे हैं।
पूरे देश ने पिछले 9 वर्षों में व्यापक परिवर्तन देखे हैं- उपेक्षा और संकट की छाया के बीच पूर्वोत्तर का उदय हुआ है और यह क्षेत्र भारत के विकास इंजन के रूप में उभरकर सामने आया है, जिसे अभूतपूर्व प्रयासों और अविश्वसनीय इच्छाशक्ति की एक प्रेरक कथा माना जा सकता है। परिणामस्वरूप, समग्र प्रगति और विकास के युग की शुरुआत हुई है।
वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने हाल ही में 2023-2024 का बजट पेश किया है और बजट में प्रस्तावित प्रगति के मार्ग का विश्लेषण; पूर्वोत्तर के दृष्टिकोण के जरिये किया जाना चाहिए। अष्टलक्ष्मी राज्यों की 7 प्राथमिकताओं- समावेशी विकास, अंतिम व्यक्ति तक लाभ, अवसंरचना, निवेश क्षमता, हरित विकास, युवा और वित्तीय क्षेत्र में सुधार– को सप्तऋषि की संज्ञा दी गयी है। निस्संदेह, पूर्वोत्तर राज्यों को इन प्राथमिकताओं से लाभ प्राप्त होगा।
पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय (डोनर) के लिए 2023-24 के लिए बजट में 5,892.00 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो 2022-23 के आरई आवंटन (2,755.05 करोड़ रुपये) से 114 प्रतिशत अधिक है। यह इरादे के अनुरूप कार्य का निर्विवाद और अकाट्य प्रमाण है। उल्लेखनीय है कि इनमें से पूंजीगत परिसंपत्ति के निर्माण के लिए समर्पित पूंजीगत व्यय के रूप में 4,093.25 करोड़ रुपये (92 प्रतिशत) का प्रावधान किया गया है।
इसके अतिरिक्त, 2014 से, 54 केंद्रीय मंत्रालयों के बजट आवंटन में भी भारी वृद्धि हुई है तथा मंत्रालयों के लिए कार्यादेश है कि वे अपने सकल बजटीय समर्थन का 10 प्रतिशत पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए समर्पित करें। यह अब बढ़कर 94,679.53 करोड़ रुपये हो गया है, जो 2022-23 के आवंटन से लगभग 30 प्रतिशत अधिक है। पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए पिछले कुछ वर्षों के वित्तीय प्रोत्साहन को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि 2023-24 में 10 प्रतिशत जीबीएस का प्रावधान; 2014-15 के वास्तविक व्यय, जो लगभग 24,819.18 करोड़ था, की तुलना में लगभग 281 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है। इस वित्तीय वर्ष के अंत तक पूर्वोत्तर क्षेत्र में लगभग 5 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके होंगे और यह प्रधानमंत्री के पूर्वोत्तर क्षेत्र को दक्षिण पूर्व एशिया के प्रवेश द्वार के रूप में विकसित करने के दृष्टिकोण की पुष्टि है तथा हमारी एक्ट ईस्ट नीति के अनुरूप भी है।
ज़मीनी स्तर पर अधिकतम प्रभाव सुनिश्चित करने के लिए डोनर को लक्षित पैकेज और योजनाओं के साथ राजकोषीय समर्थन प्रदान किया गया है। उदाहरण के तौर पर, पूर्वोत्तर के लिए नयी प्रधानमंत्री विकास पहल (पीएम-डिवाइन) योजना के तहत 6,600 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जिसका उद्देश्य युवाओं और महिलाओं के लिए आजीविका के अवसरों का सृजन करते हुए, पूर्वोत्तर राज्यों में बड़े पैमाने की परियोजनाओं के साथ अवसंरचना-विकास को पुनः सशक्त करना है।
प्रधानमंत्री विश्वकर्मा कौशल सम्मान योजना के तहत स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को समर्थन या जनजातीय समूहों के विकास और उत्थान के लिए प्रधानमंत्री पीवीटीजी (विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह) कार्यक्रम जैसी पहल के माध्यम से हमारी जड़ों को मजबूत करने और विकास के अंतिम सिरे पर खड़े व्यक्ति को सशक्त बनाने पर बजट का विशेष ध्यान; महिलाओं के नेतृत्व वाले स्वयं सहायता समूहों की क्षमता को भी बढ़ावा देगा।
पूर्वोत्तर का कृषि-बागवानी क्षेत्र संभावनाओं से भरपूर है और बजट में इसके उपयोग के लिए कई अवसर मौजूद हैं। पूर्वोत्तर क्षेत्र को सफलता के उदाहरण के रूप में पेश किया जा सकता है और प्राकृतिक खेती के तहत 1 करोड़ किसानों को लाने का लक्ष्य हासिल करने की बात देश को प्रेरित कर सकती है। इसी तरह, कृषि-त्वरक कोष इस क्षेत्र में स्टार्टअप्स की मौजूदा क्षमता को बढ़ावा देगा। इसके साथ ही, कौशल विकास, पर्यटन क्षमता के विकास, डिजिटलीकरण, सतत विकास पर जोर और हरित कार्यक्रम पर हमारा विशेष ध्यान; पूर्वोत्तर क्षेत्र के सतत विकास की दिशा में भारत सरकार द्वारा किए जा रहे मौजूदा प्रयासों का पूरक है।
सुरक्षा और शांति इस क्षेत्र की एक प्रमुख चुनौती थी, लेकिन सरकार के निरंतर प्रयासों और राज्यों के घनिष्ठ सहयोग से, पूर्वोत्तर आज शांति और स्थिरता के एक अभूतपूर्व युग में प्रवेश कर गया है। 2014 के बाद से, इस क्षेत्र में उग्रवाद की घटनाओं में 74 प्रतिशत की कमी आयी है और 8,000 से अधिक युवा आत्मसमर्पण करने के बाद उज्जवल भविष्य की कामना कर रहे हैं।
इसी तरह, परिवहन व दूरसंचार संपर्क का विकास किसी क्रांति से कम नहीं है। 2014 से पहले सिर्फ असम ही रेलवे से जुड़ा था। अब अगरतला और ईटानगर को भी जोड़ दिया गया है तथा अन्य राजधानियों को भी जल्द ही रेल-सुविधा प्राप्त होगी। हमारे राष्ट्रीय राजमार्गों के माध्यम से पूर्वोत्तर में निर्बाध सड़क संपर्क सुनिश्चित करने के लिए सरकार 1.6 लाख करोड़ रुपये खर्च कर रही है। हवाई संपर्क के संदर्भ में, पांच पूर्वोत्तर राज्यों- मिजोरम, मेघालय, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड– से आजादी के बाद पहली बार हवाई उड़ानें भरीं गयीं। 2014 में इस क्षेत्र में सिर्फ 9 हवाई अड्डे थे, अब इस क्षेत्र में हवाई अड्डों की संख्या लगभग दोगुनी होकर 17 हो गई है, जिनमें ईटानगर का डोनी पोलो नवीनतम हवाई अड्डा है। भारत सरकार ने 2023 के अंत तक क्षेत्र में पूर्ण दूरसंचार संपर्क की सुविधा प्रदान करने के लिए 500 दिनों का लक्ष्य निर्धारित किया है, जिससे दूरसंचार संपर्क में भी व्यापक विस्तार देखा जा रहा है।
अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण पहल है- ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की भावना के साथ लोगों के बीच आपसी संपर्क स्थापित करना और भावनात्मक जुड़ाव को गहरा करना। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में, पूर्वोत्तर का शेष भारत के साथ सांस्कृतिक और भावनात्मक एकीकरण तथा पराया होने की भावना को दूर करना सर्वोच्च प्राथमिकता रही है। युवाओं में सांस्कृतिक जुड़ाव मजबूत करने के लिए अब ‘युवा संगम’ के तहत युवा सांस्कृतिक आदान-प्रदान यात्राएं आयोजित की जाएंगी। लोगों तक पहुंचने, उनसे बातचीत करने, योजनाओं के कार्यान्वयन की निगरानी करने और मुद्दों को तत्काल हल करने के लिए कम से कम 16 केंद्रीय मंत्री हर महीने पूर्वोत्तर का दौरा करते हैं।
हाल की उत्तर-पूर्व परिषद के स्वर्ण जयंती समारोह में माननीय प्रधानमंत्री का आह्वान, “पूर्वोत्तर के कार्य तेजी से करें और सबसे पहले करें” (‘एक्ट फास्ट फॉर नॉर्थ ईस्ट, एक्ट फर्स्ट फॉर नॉर्थ ईस्ट’) ही पूर्वोत्तर क्षेत्र की आगे बढ़ने की यात्रा का मूलमंत्र है। अब पीछे मुड़कर नहीं देखना है। बहानों पर कोई विचार नहीं किया जाएगा, क्योंकि वे दिन अब बीत चुके हैं। पूर्वोत्तर के विकास के लिए कदम मजबूती से उठाए जा चुके हैं!
*(जी किशन रेड्डी भारत सरकार में पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास, पर्यटन और संस्कृति मंत्री है।)