- जितेन्द्र कुमार सिन्हा
पटना :: यह सही है कि रुद्राक्ष धारण करने वाले को ब्रह्मत्व, रुद्रत्व और सत्य संकल्प की प्राप्ति होती है। जो रुद्राक्ष धारण करता है, उसे रुद्र रूप ही समझना चाहिए इसमें किसी प्रकार का संसय नहीं होनी चाहिए।
यह भी सही है कि रुद्र+ अक्ष = रुद्राक्ष होता है और रुद्र अर्थात् शिव और अक्ष अर्थात् आँसू भी होता है।
शिव पुराण के अनुसार सदाशिव ने लोकोपकार के लिए पार्वती जी से कहा कि हे देवि, मैंने पूर्व समय मन को स्थिर कर दिव्य सहस्त्र वर्ष पर्यन्त तपस्या की थी। उस समय मुझे कुछ भय सा लगा-जिससे मैने अपने नेत्र खोल दिये, मेरे नेत्र खुलने पर नेत्रों से आँसुओं की वुन्दें गिरने लगी, और यह बुंद पृथ्वी पर वृक्ष का रूप लेने लगा, बाद में इसे रुद्राक्ष के रुप में जाना गया। इस वृक्ष में जो फल लगता है उसे रुद्राक्ष का फल कहा जाता है।
यह भी सही है हमारे पौराणिक ग्रथों में यथा शिवपुराण, स्कन्दपुराण, लिंगपुराण आदि में रुद्राक्ष के विषय में आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और आयुर्वेदिक प्रकरण मिलते हैं।
भारत में रुद्राक्ष विशेषकर हिमालय आंचलिक भागों में यथा- नीलगिरी, मैसूर, अन्नामलै, हरिद्वार तथा देहरादून में मिलते हैं, नेपाल में इसका सर्वाधिक उत्पादन क्षेत्र माना जाता है। इसके अलावा तिब्बत, इंडोनेशिया, सुमात्रा, चीन, मलेशिया में भी इसकी पैदावार होती है।
प्रायः देखा गया है कि पांच मुखी रुद्राक्ष भौतिक समस्याओं, मानसिक तनाव से छुटकारा दिलाने, हृदय रोग, ब्लडप्रेशर, अनिद्रा, दिमागी उलझन, डिप्रेशन, निराशा, हताशा आदि तनाव जनित बीमारियों आदि में तथा दूषित ग्रहों के दुष्प्रभाव को कम करता है।
रूद्राक्ष हृदय को स्वच्छ, मन को शांत तथा दिमाग को शीतल रखता है, दीर्घ आयु एवं स्वास्थ्य प्रदान करता है। जो व्यक्ति रूद्राक्ष धारण करते हैं उनका मन शांत और स्थिर रहता है। रूद्राक्ष धारण करने से तनावजनित बीमारियाँ नहीं होती है। धारक को तनाव से मुक्ति मिलती है। व्यक्तित्व में सात्विक प्रवृति का विकास होता है।
रूद्राक्ष वात, कफ तथा अन्य रोगों का शमन करता है। रक्त का शोधन करता है। यदि रूद्राक्ष के दानों को रात को तांबे के बर्तन में, जलभर कर उसमें डाल कर रख देते हैं और सुबह दानों को निकाल कर खाली पेट उस जल को पीते हैं तो इससे हृदय रोग तथा कब्ज में लाभ मिलता है।
रूद्राक्ष के दाने को दूध में उबालकर दूध पीने से स्मरण शक्ति का विकास होता है और खांसी में भी आराम मिलता है। उच्च रक्तचाप के लिए रूद्राक्ष की माला को वरदान स्वरूप माना गया है। इसके लिए आवष्यक है कि रूद्राक्ष के दाने या माला को रोगी के ऐसे पहनाना चाहिए ताकि वह रोगी के हृदय स्थल पर स्पर्श करती रहे। रूद्राक्ष रोगी के शरीर का अनावश्यक ताप अपने में खींचकर उसे बाहर फेकती है।
कंठ में केवल एक या तीन रूद्राक्ष धारण करने से गले की खराश समाप्त होती है और टॉंसिल नहीं बढ़ते हैं, दंत पीड़ा नहीं होती है तथा स्वर का भारीपन दूर होता है। रूद्राक्ष धारण करने से मन को असीम शांति मिलती है तथा उच्च रक्तचाप नियंत्रित होता है।
स्त्री रोगों में प्रदर, मूर्च्छा, हिस्टीरिया आदि बीमारी में छह मुखी रूद्राक्ष को धारण करने से रोग से छुटकारा मिलता है। रूद्राक्ष के दाने को पानी में घिसकर फोड़ों पर लेप करने से फोड़ा ठीक हो जाता है। रूद्राक्ष और नीम की टहनी को पीसकर लगाने से मवादयुक्त खुजली नहीं होता है।
रूद्राक्ष धारण करने से मनुष्य में आत्मविश्वास, मनोबल में वृद्धि और मानसिक शांति मिलती है। व्यापारियों को व्यापार के लिए और सामान्य लोगों को पारिवारिक समस्याओं के समाधान के लिए, कार्य की सफलता के लिए और सुख- समृद्धि के लिए रूद्राक्ष धारण करना अत्यंत लाभप्रद होता है।