पटना: 27 मार्च 2022:: ख्यातिप्राप्त कला समालोचक और साहित्यकार प्रयाग शुल्क शनिवार को कला एवं शिल्प महाविद्यालय के विद्यार्थियों को अपने जीवन संस्मरण और प्रसंगोंं को सुनाया। उन्होंने अपने जीवन में विभिन्न कथाकारों, कवियों, कलाकारों और संगीतकारों के साथ बीताए समय, उनके साथ के संस्मरणों और प्रसंगों को सुनाया। उन्होंने विशेषरूप से जे. स्वामीनाथन के प्रसंगों को सुनाया और बताया। प्रयाग शुक्ल ने जे. स्वामीनाथन को उद्धृत करते हुए कहा कि वो कहते थे जब भी कोई संबोधन हो तो खरा होना चाहिए। जब हम मनुष्य को संबोधित होते हैं तो मनुष्य ही देखता है, मनुष्य ही बनता और मनुष्य ही कलाकृतियों को रचता है। कला प्रकृति के आईने में अपने को कभी नहीं देख सकती। प्रकृति की अलग दुनिया और कला की अलग दुनिया है। प्रकृति और कला एक-दूसरे से लेते हैं, कॉपी नहीं करते।
प्रयाग शुक्ल ने कहा कि कला का अर्थ निकालने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। एक प्रश्न के जवाब में प्रयाग शुक्ल ने कहा कि कला में सामग्री ही वो माध्यम है जिनमें हजारों की संख्या में चीजें हैं। मटेरियल को पहचानना होता है। उसकी एक बड़ी दुनिया हे। यही उसका महत्व है।
प्रयाग शुक्ल के संबोधन से पहले महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. अजय कुमार पांडेय ने उनका स्वागत किया और परिचय कराया। कहा, प्रयाग शुक्ल देश के तमाम प्रमुख कला पत्रिकाओं के संपादक रहे हैं। कल्पना पत्रिका से शुरू कर दिनमान तक पहुंचे। इनको पढ़कर हमलोग सीखें और कला के शिक्षक बनें। इनकी कविताएं एनसीईआरटी के सिलेबस में शामिल है। इनकी संगति अंबर दास, गायतोंडे, हुसैन, सुजा, तैय्यब मेहता, राम कुमार, अज्ञेय आदि के साथ रही।
कार्यक्रम के अंत में डॉ. राखी कुमारी ने धन्यवाद ज्ञापन किया। डॉ. रश्मि, शशिरंजन सहित विद्यार्थी मौजूद थे।