- प्रो. अजय कुमार झा
पंकज के एक कनिष्ठ सहकर्मी रहे हैं: राजवंश जी। तब कोविड अपने चरम पर था। उनके शहर में लॉक डाउन चल रहा था। रोज किसी न किसी अप्रिय घटना का समाचार हर घंटे टपक रहा था। ज्यादातर लोगों के कितने ही अपने इष्टमित्र, परिजन और परिचित उन्हें छोड़कर जा चुके थे। कई अन्य लोग जीवन के लिए संघर्षरत थे। कभी भी मोबाइल की घंटी बजती तो लोगों का दिल दहल जाया करता था, कि पता नहीं क्या समाचार मिलने वाला था! ज्यादातर लोग अपने मित्रों, संबंधियों, सहयोगियों और परिचितों को फोन मिलाने की हिम्मत जुटा पाने से भी कांप जाते थे। लोगों का मानसिक खौफ अपने चरम पर था। जिससे भी बातें होतीं उसकी ओर से किसी न किसी हृदय-विदारक घटना का जिक्र होना तय ही होता था।
तभी एक दिन ग्यारह बजे रात में पंकज के मोबाइल की घंटी घनघना उठी। मोबाइल में राजवंश का नाम दिख रहा था। इतनी रात गए ? इस वक्त तो उसका फोन कभी आता नहीं! पंकज का दिल धड़क उठा। पता नहीं अब यह क्या बताने वाला था! उन्होंने ज्योंहि मोबाइल के स्वीच ऑन किये, उधर से राजवंश की कहरती हुई आवाज उनके कानों को बेध गई, “सर……. !”
“हां….राजवंश…बोलो….कैसे हो..?”
“सर …..मेरी मां नहीं मिल रही… !”
“मतलब….? क्या बोल रहे हो राजवंश..?”
मैं बिल्कुल कुछ समझ ही नहीं पाया कि आखिर राजवंश बोल क्या रहा था! मां मिल नहीं रही का क्या मतलब ?
उनकी बातों पर वह फूट-फूट कर रोने लगा। रोते रोते ही उसने कहा, “हां सर, पता नहीं मेरी मां कहां चली गई! सर इससे तो अच्छा था कि वह जो उसे कोविड हुआ था उससे ही मर गई होती! तब पता तो होता कि वह अब नहीं रही। पर ऐसे में तो मैं बेचैन हो गया हूं। वह कोविड से तो बिल्कुल ठीक हो गई थी। पर कल हम सब्जी लाने गए थे, उसी बीच वह कब मेरे पीछे पीछे ही निकल गई; हम समझ भी नहीं पाए। और अभी तक वह मिली नहीं। अस्सी- बेरासी बरष की बूढ़ी थी। उसे दिखलाई भी कम पड़ता था। बातों को थोड़ा भूल भी जाती थी।पता नहीं वह कहां होगी! किस हाल में होगी ! उसके पास पैसे भी तो नहीं थे ! न कोई अतिरिक्त कपड़े थे उसके पास!पता नहीं किस हाल में होगी वह! हमलोग लगातार उसे खोज रहे हैं। मंदिर, घाट, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, हॉस्पिटल, अनाथालय, सर हर जगह खोज चुके उसको ! कहीं नहीं मिली ! आपने किसी बूढ़ी औरत को देखा है अपने मुहल्ले में सड़कों पर इधर उधर भटकते हुए ? अगर देखा है तो वह मेरी मां ही होगी, सर ! “
इतना कहते कहते वह आगे नहीं बोल पाया! उसकी आवाज छलछलाने लगी। और तभी फोन कट गया!
अबतक दो महीने बीत चुके हैं। वह अब भी नहीं मिलीं।
राजवंश आज भी रोज उनकी बाट जोह रहा है। शायद उसकी बूढ़ी मां किसी दिन अचानक आ जाए !!
(लघु कथा सीरीज: प्रो अजय कुमार झा के द्वारा लिखी लघुकथा 2)