- दिलीप कुमार*
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्म वाले दिन 2 अक्टूबर को उनका भी जन्म हुआ था। घरवालों ने कहा कि वह तो सत्य और अहिंसा की पुजारी बनेगी। लेकिन छोटी बच्ची लवलीना बोरगोहेन को महात्मा गांधी के विचारों ने कितना प्रभावित किया, उससे कहीं अधिक वह किक बॉक्सिंग करने वाली अपनी बड़ी जुड़वा बहनों- लिचा और लीमा बोरगोहेन से प्रभावित हुईं। गांधी जी की पोथी को बस्ते में डालकर वह बड़ी बहनों के साथ किक बॉक्सिंग करने लगी। दोनों बड़ी बहनों को राष्ट्रीय किक बॉक्सिंग में असम राज्य का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला तो उन्हें लगा कि सही तरीके से लात और मुक्के चलाने का अभ्यास करती रही तो अगली बार वह भी राष्ट्रीय स्तर की किक बॉक्सिंग प्रतियोगिता में असम राज्य के लिए मेडल जीतने में कामयाबी हासिल कर लेंगी। मगर इसी बीच विश्व महिला मुक्केबाजी के आकाश में एक नए नक्षत्र की चमक दिखाई पड़ी। भारत की एमसी मैरी कॉम ने लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक जीता तो वह पूरे देश की लड़कियों के लिए नई प्रेरणा बन गईं। मणिपुर सहित पूरे पूर्वोत्तर में मैरी कॉम पोस्टर गर्ल बन गई। सरकारी स्तर पर नई प्रतिभाओं की खोज का सिलसिला चालू हुआ। उसके विद्यालय में भारतीय खेल प्राधिकरण के कोच पोदुम बोरो और अभिषेक मालवीय आए। विद्यालय की सभी खिलाड़ियों को मुक्केबाजी के बारे में बताया गया। यह भी बताया गया कि किक बॉक्सिंग ओलंपिक से मान्यता प्राप्त खेल नहीं है और उसमें ज्यादा संभावना भी नहीं है। मुक्केबाजी को ओलंपिक में मान्यता है और वहां संभावनाएं अधिक हैं। लवलीना बोरगोहेन को यह बात जंच गई। वह ट्रायल में शामिल हुईं। प्रशिक्षकों की पारखी नजरों ने उनकी प्रतिभा को पहचाना। मुक्केबाजी के प्रशिक्षण के लिए उन्हें चुन लिया गया। कुछ महीनों के प्रशिक्षण के बाद ही लवलीना बोरगोहेन राष्ट्रीय सब जूनियर प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए महाराष्ट्र गईं। इससे उनका विश्वास बड़ा और वह खूब मेहनत करने लगीं। 2016 में पहली बार उन्हें अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग लेने का मौका मिला। क्वार्टर फाइनल तक का सफर उन्होंने तय किया। मुट्ठी खाली रह गई। लेकिन विश्वास बढ़ता गया। 2017 में उन्होंने वेल्टरवेट एशियाई चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता। 2018 की विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में सेमीफाइनल तक का सफर तय करते हुए उन्होंने कांस्य पदक जीता। 2019 के विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में भी वह कांस्य पदक से आगे नहीं बढ़ पाईं। सोना के लिए उनकी भूख बढ़ती गई। नई दिल्ली में प्रथम भारतीय ओपन अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में सोने का तमगा उनके हाथ आया। गुवाहाटी में आयोजित द्वितीय भारतीय ओपन अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में उन्हें रजत पदक जीता। 2020 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित लवलीना बोरगोहेन ने उलन बटोर में आयोजित अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में रजत पदक जीतकर ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया। टोक्यो में पदक जीतने को लेकर वह काफी आशान्वित रही। प्रशिक्षण के लिए उन्हें इटली भी जाना था। लेकिन कोरोना की चपेट में आ जाने के कारण उनकी इटली यात्रा टल गई। फिर भी लवलीना हौसला नहीं खोया। मुश्किलों से वह जूझती रही। अस्पताल और क्वारंटाइन में रहते हुए पहले कोरोनावायरस को हराया और फिर अपने मन में नया विश्वास जगाया। इसी विश्वास के साथ वह टोक्यो ओलंपिक के लिए रवाना हुई थी।
प्री क्वार्टर फाइनल में लवलीना बोरगोहेन की भिड़ंत जर्मनी की मुक्केबाज नादिन अप्टेज से हुई। पहले दो राउंड में लवलीना ने मुक्कों की बरसात कर दी। यद्यपि मुकाबला काफी कड़ा था लेकिन लवलीना बोरगोहेन की आक्रामक शैली के आधार पर निर्णायकों ने उन्हें 2-1 से विजेता घोषित किया। क्वार्टर फाइनल में 2018 की विश्व चैंपियन चीनी ताइपे की खिलाड़ी चिन निन चेन उनके सामने थी। लवलीना बोरगोहेन ने अपना हौसला बुलंद रखा। खेल में अपनी आक्रामकता को बरकरार रखते हुए उसने चिन निन चेन को 4-1 से पराजित कर दिया। सेमीफाइनल में प्रवेश के साथ ही उनका पदक पक्का हो गया। ओलंपिक की मुक्केबाजी स्पर्धाओं में भारत का तीसरा पदक पक्का हो गया। मगर लवलीना अपने ओलंपिक पदक को सुनहरा रंग देना चाहती थीं। पूरे विश्वास के साथ उन्होंने कहा भी- ‘मेडल तो एक ही होता है- गोल्ड। उसी की तैयारी है।’ सेमीफाइनल में वह नया इतिहास लिखने के लिए उतरी थीं। लेकिन तुर्की की विश्व चैंपियन बुसेनाज सुरमेनेली ने उनके इरादों पर पानी फेर दिया। तकनीक और ताकत दोनों में अव्वल रहते हुए बुसेनाज ने लवलीना बोरगोहेन को 5-0 से पराजित किया। लवलीना बोरगोहेन का सुनहरा सपना टूट गया लेकिन चमकता हुआ कांस्य पदक उनकी झोली में आया। पूरा देश अपनी बेटी के इस शानदार प्रदर्शन पर गर्वित है। टोक्यो ओलंपिक में लवलीना बोरगोहेन का पदक भारत के लिए तीसरा पदक है। टोक्यो में मीराबाई चानू भारोत्तोलन में और पीवी सिंधु बैडमिंटन में पदक जीत चुकी हैं। ओलंपिक इतिहास में भारत के लिए मुक्केबाजी का यह तीसरा पदक है। लवलीना बोरगोहेन से पहले 2008 के बीजिंग ओलंपिक में विजेंद्र सिंह और 2012 के लंदन ओलंपिक में एमसी मैरी कॉम ने मुक्केबाजी स्पर्धा में कांस्य पदक जीता है।
लवलीना बोरगोहेन एक सामान्य परिवार से आती हैं। उनके माता-पिता टिकेन बोरगोहेन और ममोनी बोरगोहेन छोटी सी एक दुकान चलाते हैं। आर्थिक मजबूती न रहने पर भी उन्होंने बच्चों को प्रोत्साहित किया। खेल के क्षेत्र में उन्हें आगे बढ़ाया। अब लवलीना बोरगोहेन उनका मान बढ़ा रही हैं। लवलीना के साथ-साथ वो दोनों भी असम में स्टार बन चुके हैं।
*(लेखक,कवि,मोटिवेशनल गुरु दिलीप कुमार भारतीय रेल यातायात सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हैं।)