बर्शिम-ताम्बेरी: दोस्ती जो मिसाल बन गई

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  • दिलीप कुमार

मुताज़ एसा बर्शिम कतर के हैं। जियानमार्को ताम्बेरी इटली के नागरिक हैं। मुताज 30 वर्ष के हैं तो ताम्बेरी 29 वर्ष के। ओलंपिक की मूल भावना की मशाल दोनों के दिलों में जलती है। देश और धर्म की दीवारों को लांघते हुए दोनों एक-दूसरे का प्रोत्साहित करते हैं। टोक्यो में दोनों ने मिलकर एक नया इतिहास लिखा- सहयोग और सम्मान का इतिहास। ऊंची कूद स्पर्धा में दोनों खिलाड़ी बिना एक बार भी असफल हुए 2.37 मीटर तक की छलांग लगा गए। फिर नया लक्ष्य निर्धारित किया गया। 2.39 मीटर की ऊंची कूद का। दोनों में से जो सफल होते, उन्हें नए ओलंपिक रिकॉर्ड के साथ सोने का दमकता हुआ पदक प्राप्त होता। मुताज़ एसा बर्शिम ने प्रयास किया। वह विफल रहे। जियानमार्को ताम्बेरी ने प्रयास किया। वह भी विफल रहे। दोनों को दो-दो मौके और मिले। दोनों ने प्रयास किया, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। सोना किसका होगा? सवाल उलझ गया था। जम्प ऑफ की तैयारी प्रारंभ हुई। इसमें जो खिलाड़ी पहले नई ऊंचाई को प्राप्त करता, उसे सोना मिल जाता। जियानमार्को ताम्बेरी तब तक थक चुके थे। पुराना चोट फिर से उभर आया था। ऐसे में मुताज़ एसा बर्शिम के पास मौका था कि वह लगातार प्रयास करके नया ओलंपिक कीर्तिमान स्थापित करते हुए अपने और अपने देश के लिए स्वर्णिम सफलता अर्जित करें। लेकिन, छलांग लगाने के बजाय मुताज़ एसा बर्शिम निर्णायक के पास पहुंचे। बड़ी ही सहजता से उन्होंने पूछा- क्या आप हम दोनों को स्वर्ण पदक नहीं दे सकते। नियमों की किताबें खोली गईं। पुराने दृष्टांतों को नजीर बनाया गया। एथलेटिक्स की स्पर्धाओं में अंतिम बार 1912 के स्टॉकहोम ओलंपिक में स्वर्ण पदक की साझेदारी हुई थी। निर्णायक ने कहा- नियमानुसार स्वर्ण पदक की साझेदारी संभव है। हम आप दोनों को एक-एक स्वर्ण पदक दे सकते हैं। निर्णायकों की बात सुन मुताज़ एसा बर्शिम खुशी से हवा में उछले। जियानमार्को ताम्बेरी के मन का मयूर नाच उठा। दोनों 2.37 मीटर की ऊंची कूद के साथ संयुक्त रूप से ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता घोषित किए गए। बेलारूस के मक्सीम नेदासेकाउ ने भी 2.37 मीटर की छलांग लगाई। लेकिन, प्रारंभिक छलांगों में विफल रहने के कारण उन्हें कांस्य पदक दिया गया। वर्तमान नियमों के अनुसार यदि दो या अधिक खिलाड़ी समान ऊंचाई तक कूदते हैं तो कम प्रयासों में ऊंचाई तक खुद पाने में सफल खिलाड़ी को विजेता घोषित किया जाता है। जियानमार्को ताम्बेरी और मुताज़ एसा बर्शिम ने बिना विफल हुए 2.37 मीटर की छलांग लगाई थी, जिसके कारण उन्हें स्वर्ण पदक का दावेदार माना गया।
अपनी स्वर्णिम सफलता से मुताज़ एसा बर्शिम बहुत खुश हुए। लेकिन, ज्यादा खुशी उन्हें जियानमार्को ताम्बेरी की स्वर्णिम सफलता से प्राप्त हुई। 2016 में रियो दी जेनेरियो ओलंपिक से पहले जियानमार्को ताम्बेरी चोटिल हो गए थे और उनके कैरियर पर प्रश्नचिह्न लग गया था। 2017 से कतर के खिलाड़ी मुताज़ एसा बर्शिम ही जियानमार्को ताम्बेरी का मार्गदर्शन करते रहे और हर कदम पर उनका साथ देते हुए नई चुनौतियां से जूझने के लिए तैयार किया। मित्र वही जो संकट के समय मित्र का साथ दे। रियो ओलंपिक से पहले चोटिल हो जाने के कारण मानसिक रूप से हताश हो चुके जियानमार्को ताम्बेरी को जब दो बार के विश्व चैंपियन मुताज़ एसा बर्शिम का साथ मिला तो उनका आत्मविश्वास काफी बढ़ गया। इस बढ़े हुए आत्मविश्वास के सहारे ही उन्होंने 2.37 मीटर की ऊंची छलांग लगाने में सफलता हासिल की। इस तरह टोक्यो ओलंपिक में दोस्ती की एक नई मिसाल बनी। मुताज़ एसा बर्शिम और जियानमार्को ताम्बेरी की संयुक्त सफलता से दुनिया आह्लादित है। नफरत को मिटाने एवं प्रेम और भाईचारे को बढ़ाने के लिए पूरी दुनिया को नए नायकों की आवश्यकता है। ऐसे नायक जो न सिर्फ अपने बारे में सोचें बल्कि दूसरों को भी प्रेरित करते हुए उन्हें आगे बढ़ने में मदद करें।

(कवि, लेखक और मोटिवेशनल गुरु दिलीप कुमार भारतीय रेल यातायात सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हैं।)

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