- विनय कुमार, वरिष्ठ पत्रकार*
देश में 34 साल बाद पिछले साल राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 लाई गई थी। पिछले महीने की 29 जुलाई को जब इस बदलते भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति के एक साल पूरे हुए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिक्षाविदों और छात्रों से सीधा संवाद किया। उनके अनुभव जानने के साथ सरकार की सोंच भी उनके सामने रखी एवं कुछ राष्ट्रीय घोषणाओं और प्रावधानों का भी एलान किया। जिस तरीके से बहुप्रतीक्षित राष्ट्रीय शिक्षा नीति का देश भर में व्यापक स्वागत किया गया, कुछ उसी अंदाज में एक साल बाद राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बदलावों पर चर्चा हुई और इसके सकारात्मक परिणाम की झलक भी दिखनी शुरू हुई।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 अंतरिक्ष वैज्ञानिक के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट पर आधारित है। देश की आजादी के बाद से ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनाने का काम शुरु हुआ और पहली बार 1968 में यह पारित हुआ। उसके बाद 1986 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति का प्रारुप देश के सामने आया। देश और दुनिया में पिछले 70 सालों में काफी कुछ बदला है। भारत की दुनिया में छवि एक सशक्त राष्ट्र के रुप में और दमदार हुई है। पिछले सालों में कई उच्च संस्थानों ने दुनिया में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। लगातार शिक्षा नीति में बदलाव की मांग और चर्चाएं हो रही थी। ऐसे में 2019 में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लेकर जनता से सलाह मांगना शुरू किया। देश भर से आयी राय पर बनी ड्राफ्ट पर कई दौर की चर्चा के बाद नये भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति का इंतज़ार पिछले साल 29 जुलाई को खत्म हुआ।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति में अगले 10 सालों में सकल नामांकन अनुपात को 100 फीसदी लाने का लक्ष्य रखा गया है, जिसकी इस देश में व्यापक जरुरत थी क्योंकि हम आने वाले दिनों में देश की आजादी की 75वीं सालगिरह मनाने जा रहे हैं। ऐसे में देश की पूरी आबादी का साक्षर नहीं होना हमारे विकास और सफलता की कहानी पर एक काला धब्बा जैसा है। इतना ही नहीं शिक्षा क्षेत्र पर सकल घरेलू उत्पाद का 6 फीसदी खर्च का लक्ष्य रखा गया है इसमें सबसे ज्यादा फोकस कौशल विकास और शोध पर रखा गया है ताकि भारत की धमक शिक्षा और कौशल के क्षेत्र में और बढ़ सके। अब तक ये आरोप लगता रहा है कि चाहे तकनीकी शिक्षा हो या फिर उच्च शिक्षा, उसमें देश के क्षेत्रीय भाषाओं को तरजीह नहीं मिली है और न ही क्षेत्रीय भाषाओं में वो सुविधा है जिसकी वजह से कई प्रतिभा अपनी मेधा का प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं। उसे भी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में दूर करने का प्रयास किया गया है।
एक साल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दिशा में एक कदम आगे बढ़ाते हुए यह एलान किया कि देश के 8 राज्यों के 14 इंजीनियरिंग कॉलेज, 5 भारतीय भाषाओं-हिंदी-तेलुगू-तमिल, मराठी और बांग्ला में इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू करने जा रहे हैं। इतना ही नहीं इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रम का 11 भारतीय भाषाओं में अनुवाद के लिए एक टूल डेवलप किया जा चुका है। प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत सुधारों के एक साल पूरे होने के अवसर पर यह भी साफ किया कि शिक्षा नीति को हर तरह के दबाव से मुक्त रखा गया है। जो खुलापन नीति के स्तर पर है, वही खुलापन छात्रों को मिल रहे विकल्पों में भी है। अब छात्र कितना पढ़ें, कितने समय तक पढ़ें, ये सिर्फ संस्थाएं तय नहीं कर सकेंगे बल्कि विद्यार्थियों की इच्छाएं भी पूरी होगी।
इस दौरान प्रधानमंत्री ने एतिहासिक निर्णय लेते हुए भारतीय साइन लैंग्वेज को सब्जेक्ट का दर्जा देने की घोषणा की। राष्ट्रीय शिक्षा नीति से ग्रामीण भारत के बच्चों को भी प्ले स्कूल जैसे कॉन्सेप्ट से जुड़ने का मौका मिलेगा, जो अबतक बड़े शहरों तक सीमित था। इसको लेकर विद्या प्रवेश प्रोग्राम लॉन्च किया गया है। ये प्रोग्राम आने वाले समय में यूनिवर्सल प्रोग्राम के तौर पर लागू होगा और राज्य भी इसे अपनी जरूरत के हिसाब से लागू करेंगे। देश के किसी भी हिस्से में अमीर हो या गरीब, उसकी पढ़ाई खेलते और हंसते हुए और आसानी से होगी। शुरुआत मुस्कान के साथ होगी तो आगे कामयाबी का रास्ता भी आसानी से पूरा होगा।
21वीं सदी भारत की सदी हो इसकी झलक भी राष्ट्रीय शिक्षा नीति में दिखती है, जिसे देश भर में कोरोना काल के बावजूद जमीन पर उतारने का प्रयास किया जा रहा है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में जहां परीक्षाओं के डर को खत्म करने का प्रयास किया गया है, वहीं पढ़ाई का तरीका भी बदलने की कवायद शुरू की गई है। शिक्षकों को राष्ट्रीय विधा के साथ प्रशिक्षित कर भारत की राष्ट्रीय पीढ़ी को दुनिया के काबिल बनाने की सोंच राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रारुप में नजर आती है। युवाओं की शिक्षा कौशल की मांग के अनुरुप हो इसका ढांचा भी धरातल पर उतारने की प्रकिया शुरू कर दी गई है। शिक्षा में तकनीक और शोध पर जोर इस बात का परिचायक है कि भारत अपने युवाओं को पारंपरिक शिक्षा से हटकर कौशल युक्त और रोजगार उन्मुख शिक्षा देने की राह तैयार कर रहा है, जिसकी जरुरत इस देश में काफी समय से महसूस की जा रही थी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति भारत के विश्व गुरु बनने की राह तैयार करने की झलक पेश करता नजर आता है। शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्र एक नये बदलाव का बाहक बन कर अपनी पुरानी परंपराओं को आगे बढ़ते हुए अपनी गरिमा को फिर से हासिल करने की तैयारी में है।
(यह लेखक के निजी विचार हैं)