- दिलीप कुमार*
ओलंपिक खेलों की एक समृद्ध विरासत है। मैराथन दौड़ और तीरंदाजी जैसे सबसे प्राचीन खेल ओलंपिक का अहम हिस्सा रहे हैं। लेकिन, इन खेलों में आधुनिकता के समावेश का भरपूर प्रयास भी आयोजकों द्वारा किया जाता है। टोक्यो ओलंपिक में स्केटबोर्डिंग को शामिल करके आयोजकों ने 21वीं सदी की आकांक्षाओं को प्रतिनिधित्व देने की सफल कोशिश की। स्केटबोर्डिंग बहुत पुराना खेल नहीं है। लकड़ी के तख्त के नीचे लगे दो पहियों के साथ करतब दिखाने वाला यह खेल संयुक्त राज्य अमेरिका के वेस्ट कोस्ट में 1940 ईस्वी में पहली बार खेला गया। तब से इस खेल की लोकप्रियता लगातार बढ़ती गई। लाखों युवाओं ने गलियों और चौराहों पर स्केटबोर्डिंग करते हुए इस खेल को अपनाया। युवाओं के बीच विशेष लोकप्रियता ने ही इस खेल को ओलंपिक में स्थान दिलाया। जैसा कि आयोजकों ने सोचा था, कम उम्र के खिलाड़ियों ने इस खेल में शानदार प्रदर्शन करते हुए ओलंपिक की भावना को नई ऊंचाई प्रदान की है। सबसे ज्यादा आह्लादित करने वाला परिणाम महिला स्ट्रीट स्केटबोर्डिंग स्पर्धा से आया जिसमें जापान की किशोरी निशिया मोमिजी ने 15.26 अंक लाकर सोने का चमचमाता हुआ तमगा गले में डाल अपने देश का नाम रोशन किया। निशिया मोमिजी ने जिस दिन यह उपलब्धि हासिल की, उस दिन उनकी उम्र मात्र 13 साल 330 दिनों की थी। ओलंपिक खेलों में पदक पाने वाली वह जापान की सबसे कम उम्र की खिलाड़ी बनी हैं। 1936 के बर्लिन ओलंपिक के बाद स्वर्ण पदक जीतने वाली वह सबसे कम उम्र की ओलंपियन हैं। 1936 में अमेरिकी गोताखोर मरजोरी गैस्ट्रिंग ने 13 वर्ष 267 दिन की अवस्था में स्वर्ण पदक प्राप्त किया था।
टोक्यो ओलंपिक की महिला स्ट्रीट स्केटबोर्डिंग स्पर्धा में रजत पदक पाने वाली ब्राजील की रायसा लियल ने भी सारी दुनिया को चौंकाया। 14.64 अंकों के साथ दूसरे स्थान पर रहने वाली रायसा लियल की उम्र प्रतियोगिता के दिन 13 वर्ष 203 दिनों की रही। ओलंपिक में पदक जीतने वाली वह दूसरी सबसे कम उम्र की खिलाड़ी हैं। तीसरे स्थान पर रहने वाली जापान की स्केटबोर्डिंग खिलाड़ी नाकायामा फुना की उम्र मात्र 16 साल है।
स्केटबोर्डिंग खेल नुक्कड़ संस्कृति का प्रतिनिधि है। सीढ़ियां, हैंडल, कर्व, बेंच, दीवार और ढलानों पर हैरतअंगेज करतब दिखाकर खिलाड़ी ज्यादा से ज्यादा अंक हासिल करने का प्रयास करते हैं। निशिया मोमिजी ने अधिक ऊंचाई और अधिक गति के साथ कई मौलिक ट्रिक दिखाते हुए चयनकर्ताओं को अधिक अंक देने के लिए प्रेरित किया। प्रतिस्पर्धा के दौरान अपने प्रदर्शन की कठिनता का चयन उन्होंने स्वयं किया और फिर अदम्य विश्वास के साथ निर्धारित लक्ष्य को पूरा किया। उनका कहना है कि यह खेल मजेदार और रुचिकर है। पूर्ण विश्वास के साथ निरंतर अभ्यास करते हुए निशिया मोमिजी ने इस खेल में प्रवीणता हासिल की और फिर उसमें मौलिकता को समाहित करते हुए नए लक्ष्यों को साधा। जापान में अनेक लोग स्केटबोर्डिंग गेम के पक्ष में नहीं थे। इस खेल के विरोध में प्रदर्शन भी हुए। लेकिन, उन विपरीत परिस्थितियों में भी निशिया मोमिजी ने अपना धैर्य नहीं खोया। हिम्मत नहीं हारी। विरोधियों की ओर जरा भी ध्यान नहीं दिया और खेल पर एकाग्रता को बनाए रखा। निरंतर अभ्यास और एकाग्रता के बल पर ही हम जीत की अच्छी तैयारी कर सकते हैं। आलोचनाओं पर ज्यादा ध्यान देने से हमारी तैयारी प्रभावित होती है। विश्वास कमने लगता है। निशिया मोमिजी ने पूरा ध्यान अपने खेल पर दिया। लोग क्या कह रहे हैं और वे लोग क्यों स्केटबोर्डिंग का विरोध कर रहे हैं, इस पर उसने कभी गौर नहीं किया। परिणाम सामने है। मात्र 13 साल की उम्र में निशिया मोमिजी ओलंपिक चैंपियन है। पूरे जापान को उस पर गर्व है। पूरी दुनिया उसकी उपलब्धि से आह्लादित है और ओलंपिक युवाओं में नया जोश बनकर उबल रहा है।
*कवि, लेखक, मोटिवेशनल गुरु दिलीप कुमार भारतीय रेल यातायात सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हैं।