मन का हो तो अच्छा, मन का न हो तो ज्यादा अच्छा

Uncategorized

  • दिलीप कुमार*

हम सभी जीवन में सफलता और अधिकाधिक आनंद की प्राप्ति के लिए प्रयास करते हैं। परिणाम कई बार हमारे मन के मुताबिक होता है। हमारी मेहनत का उचित प्रतिफल हमें प्राप्त होता है जिससे हमें आनंद की प्राप्ति होती है। हर कोई चाहता है कि चीजें उसके मन के मुताबिक हो। दूसरे लोग भी उसके मन के मुताबिक काम करें। लेकिन, हमारे चाहने मात्र से कुछ नहीं होता। अनेक बार परिस्थितियां हमारे अनुकूल नहीं होती हैं। हम जिन लोगों का भरोसा करते हैं, वे जरूरी नहीं कि सदैव हमारे विश्वास पर खड़े ही उतरें। जीवन में अनेक बाहर हम ऐसे लोगों पर भरोसा कर बैठते हैं, जो वास्तव में आस्तीन के सांप होते हैं और मौका पाते ही हमें डँस लेते हैं। ऐसे मन का उदास होना स्वाभाविक है। पर उदासी चाहे कितनी भी गहरी हो मन का विश्वास टूटना नहीं चाहिए। आज चीजें हमारे मन के मुताबिक नहीं हो रही हैं तो यह जरूरी नहीं कि कल भी ऐसा ही होगा।
बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन ने फिल्मी कैरियर के प्रारंभिक दौर में काफी संघर्ष किया। उनकी प्रारंभिक कई फिल्में बॉक्स ऑफिस पर पिट गई थीं। उस समय की कई नामी अभिनेत्रियां उनके लंबे कद और उनके फिल्मों के फ्लॉप हो जाने के कारण उनके साथ काम करना नहीं चाहती थीं। ऐसा लगा कि उनका जीवन ही बेकार है। एक दिन उद्विग्न मन के साथ वह घर वापस आए। कवि पिता हरिवंश राय बच्चन ने उनके मन को टोह लिया। भावुकता में अमिताभ बच्चन बोल बैठे- हर मोड़ पर विफलता। लगता है मेरा जीवन ही बेकार चला जाएगा। तब हरिवंश राय बच्चन ने अमिताभ बच्चन से जो कहा वह हम सबके लिए प्रेरणास्पद है- ‘मन का हो तो अच्छा, मन का न हो तो ज्यादा अच्छा।’ लेकिन, जब मन विचलित होता है तो ऐसी बातें समझ में नहीं आती। अमिताभ बच्चन के साथ भी ऐसा ही हुआ। वह समझ नहीं पाए कि यदि मन का ना हो रहा हो तो वह ज्यादा अच्छा कैसे? तब पिता हरिवंश राय बच्चन ने उन्हें समझाया था- ‘यदि तुम्हारे मन का नहीं हो रहा है तो वह ईश्वर के मन का हो रहा है। और ईश्वर हमेशा तुम्हारा अच्छा ही चाहेगा, इसलिए ज्यादा अच्छा।’
हमारे जीवन में जब नई-नई चुनौतियां और बाधाएं आती हैं तो परेशान होकर हम प्रश्न करते हैं कि प्रभु सारा दर्द मेरे हिस्से ही क्यों डाल रहे हो। हम कभी यह नहीं सोचते कि हो सकता है प्रभु ने हमारे लिए कुछ बेहतर सोच रखा हो और हमें मांज रहा हो।

एक प्राचीन बोधकथा है। एक किसान ने प्रभु से शिकायत की- आप हमें ढंग से किसानी करने नहीं देते। कभी ओले बरसाते हैं तो कभी कड़क की धूप ला देते हैं। इनसे हमारी फसलों को बहुत नुकसान होता है। उनका कद भी छोटा रह जाता है। शिकायत सुनने के बाद प्रभु ने कहा तुम कैसा मौसम चाहते हो, इसका निर्धारण तुम खुद कर लो। किसान ने फसल के लिए अनुकूलतम मौसम का चयन कर लिया। उस साल न तेज धूप हुई और न ही ओले की मार पड़ी। किसान प्रफुल्लित था। खेत में फसल लहलहा रही थी। लेकिन, यह क्या? जब फसल की कटाई हुई तो उसमें अनाज का दाना मिला ही नहीं। किसान ने प्रभु से शिकायत की। स्पष्ट किया कि तुमने पौधों को संघर्ष करने का मौका ही नहीं दिया। जब पौधे चुनौतियों का सामना करते हुए संघर्ष करते हैं तो उनमें नई शक्ति आती है। सब कुछ अनुकूलतम रहने के कारण पौधों में नई शक्ति पनप नहीं पाई। नई शक्ति से ही बीज बनता है। किसान को बात समझ में आ गई। जीवन में चुनौतियां और बाधाओं का आगमन हमें रोकने के लिए नहीं होता। चुनौतियों से गुजरने के बाद हममें सृजन की नई क्षमता आती है। हम नई ऊंचाइयों पर पहुंचने के लिए संघर्षरत होते हैं और फिर एक दिन ऐसा आता है जब सारे असंभव समाप्त होकर संभावनाओं के नए बीज बन जाते हैं। फिर पंक्ति की शुरुआत वहीं से होती है जहां अमिताभ बच्चन होते हैं, या सफल होने पर जहां आप होते हैं।

(*कवि, लेखक, मोटिवेशनल गुरु दिलीप कुमार भारतीय रेल यातायात सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हैं)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *