आधुनिक जीवन शैली से छिना गौरैयाओं का आवास, घोंसला लगा कर करनी होगी भरपाई

Environment

पटना, 27 जून, 2021:: आधुनिक जीवन शैली से छिना गौरैयाओं का आवास, इसेउपलब्ध करना हमारी जिम्मेदारी है। ‘हमारी गौरैया और पर्यावरण योद्धा’, पटना की ओर से आज ‘गौरैया बचाओ, पर्यावरण बचाओ’ अभियान के तहत “गौरैया और घोंसला” विषय पर आयोजित ऑनलाइन परिचर्चा में वक्ताओं ने इस बात पर ज़ोर दिया।

​चिड़ियों के लिये लाखों घोंसला बनाने वाले नई दिल्ली के नेस्टमैन और दो बार लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराने वाले राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित राकेश खत्री ने कहा कि आधुनिक जीवन शैली ने गौरैया से उनका प्रकृतिक आवास छीना लिया है। इसलिए उन्हें घोंसला उपलब्ध करना हमारी जिम्मेदारी है। उन्होने कहा कि हमने गौरैया को आवास देने के लिए अपने घरेलू और पुरानी चीजों से घोंसले का निर्माण किया। श्री खत्री ने आशा जताई कि बच्चे और युवा वर्ग गौरैया और पर्यावरण को बचा सकतें हैं। इसलिए मैंने उन्हे चुना और प्रशिक्षित किया। आज परिणाम है कि डेढ़ लाख से अधिक घोसला लगा चुके हैं और उसमें चिड़िया आ रही है। श्री खत्री ने कहा कि जब घोंसला लगाया तब शुरू में मुहल्ले वाले मजाक करते रहे। उम्मीद कम हो रही थी, तभी चौथे दिन एक जोड़ा आया और तभी से सफलता मिल गई और फिर पूरे मोहल्ले ने घोसला लगाया।

​पर्यावरण-चिंतक एवं पीआईबी, पटना के निदेशक दिनेश कुमार ने कहा कि जिस तरह से इंसान को रहने ले किए घर चाहिए उसी तरह से गौरैया को भी। हमें उनके अनुरूप हीं घोंसला बनाने की जरूरत है। उन्होने कहा कि पर्यावरण ने सभी को बनाया है और हर चीज एक दूसरे से जुड़ी है। इसमें असंतुलन होते ही विनाश होता है, जैसे वर्तमान में कोरोना सामने है। इसलिए इन्सानों के बीच रहने वाली गौरैया को भी संरक्षित रखने की जरूरत है और इसके लिए घोंसला तो लगाना ही होगा।

​परिचर्चा के संयोजक एवं बारह साल से गौरैया संरक्षण से जुड़े पी आई बी पटना के सहायक निदेशक संजय कुमार ने कहा कि कटते पेड़, उजड़ते बाग-बगीचे और कंक्रीट के बढ़ते जंगलों ने गौरैया के अधिवास को उससे छीन लिया है। गौरैया के विलुप्ति की ओर जाने के कारणों में एक यह भी महत्वपूर्ण कारण है। अंडे देने और बच्चे को पालने के लिये गौरैया इंसानों के घरों में घोंसले बनाती है। लेकिन कंक्रीट के घरों में वेंटिलेटर, खोह आदि के नहीं रहने से इसके प्रजनन पर असर पड़ रहा है। नवम्बर माह से गौरैया जोड़ा बनाने लगती है और अंडे देने के लिये घोंसला बनाने में जुट जाती है। इसलिए घरों में कृत्रिम बॉक्स या घोंसला के लिये खोह आदि की व्यवस्था की जानी चाहिये।
​ फिल्म निर्माता, सामाजिक संगठन 360 डिग्री के संस्थापक और कबाड़ से जुगाड़ कर गौरैया के लिए घोंसला और दाना घर बनाने वाले अजित कुमार झा ने कहा कि जो गौरैया हमारे बचपन की साथी हुआ करती थी और हमारे गीतों में शामिल होती थी, वर्तमान समय में एक रिफ्यूजी बन गई है । उसे वापस बुलाने की पहल होनी चाहिए, हमने उसका घर (घोंसला) उजाड़ा है तो हमे ही व्यवस्था देनी होगी । उन्होने कहा कि हमारे घरों से प्रतिदिन 29-30 प्रकार का कचरा निकलता है, जिसका उपयोग कर घोसला बनाये जा सकते हैं। कटे हुए बांस का वैसा भाग जो अनुपयोगी होता है, वह गौरैया के लिए उपयुक्त आवास साबित हुआ है।

​गौरैया संरक्षक पंकज कुमार ने कहा कि गांव में गौरैया को रहने के लिये आवास तो अभी मिल जाता है, लेकिन शहरों में आवासीय संकट ने गौरैया की परेशानी बढ़ा दी है। उन्होने बताया कि महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय,वर्धा में अध्ययन के समय छात्रावास में जूते को डब्बों को घोसला के रूप में लगा देखा, तो इस पर कुछ प्रयोग किए व कई घोंसले लगाए। शुरुआत में गौरैया नहीं आई, बाद में आने और रहने लगी। वर्तमान में बिहार के सहरसा जिले में कार्टून एवं गत्ते से घोंसला बना कर लोगों में बांट रहे हैं।

​खुद से घोंसला बना कर निःशुल्क वितरण करने वाले पटना के पर्यावरण योद्धा निशांत रंजन ने कहा कि पटना विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान गंगा घाट पर गौरैयों को देखकर इनके लिए घोसला बनाने की सोची। कई लोगों से मदद मांगने पर भी मदद नहीं मिली तो दोस्तों के साथ मिलकर स्वयं घोंसला बनाने लगा और विश्वविद्यालय परिसर में घोसला लगाने लगे। अपने और दोस्तों के कोचिंग और ट्यूशन के पैसे से 50-50 रूपया मिलाकर घोंसला बनाया और लोगों के बीच मुफ्त में बांटने लगे। अनाज महंगे होने के कारण लोगों के द्वारा पक्षियों को दाना नहीं देने की समस्या को दूर करने के लिए 40 दाना-पानी बैंक की स्थापना की, जहां आम लोगों को मुफ्त में चावल की खुद्दी पक्षियों को खिलाने के लिए दिया जाता है।

 ऑनलाइन  परिचर्चा में देश भर के पक्षी प्रेमी और पर्यावरण प्रेमियों में वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के संरक्षण प्रमुख डॉ समीर सिन्हा, जेड एस आई  पटना  के प्रभारी डॉ गोपाल शर्मा, अररिया के डॉल्फिन संरक्षक सुदन सहाय, कैलाश दहिया, मुसाफिर बैठा, त्रिपुरारी शर्मा, जिज्ञाशा सिंह, रंजन राही सहित कई छात्रगण भी जुड़े। परिचर्चा का संचालन संजय कुमार और धन्यवाद ज्ञापन निशांत रंजन ने किया।  

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