दरभंगा, दिनांक 21 मई 2021:: मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम तथा माता जानकी के अनन्य भक्त तुलसीदास न रामचरितमानस के बालकांड के प्रारंभिक श्लोक में सीता जी ब्रह्म की तीन क्रियाओं उद्भव, स्थिति, संहार— की संचालिका तथा आद्याशक्ति कहकर उनकी वंदना की है : ‘उद्भव स्थिति संहारकारिणीं हारिणीम्। सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामबल्लभाम्॥ (1-1-5) इस तरह सीता न केवल ब्रह्म की इन तीन क्रियाओं की कारण रूपा ही हैं अपितु वह तो जीव की इनके क्लेशों से रक्षा भी करती हैं। उद्भव स्थिति, संहार (प्रलय) की स्थितियां ऐसी हैं जो प्रत्यक्ष रूप में किसी अंश तक सुरक्षात्मक होकर भी पीड़ा, क्लेश-कष्ट की हेतु भी हैं। जन्म लेना (उद्भव, उत्पत्ति) कष्टकारक है कितनी अनजानी पीड़ा भोग कर मां के गर्भ में नौ माह रहकर जीव जन्मता है एवं उस कष्ट की कल्पना भी पीड़ा दायक है। इसी प्रकार स्थिति (पल्लवन) अर्थात जीव का संपूर्ण जीवन भी क्लेश कारक है जिसमें वह जरा, व्याधि सहित अनेक विकारों— काम, क्रोध, मोह, लोभ, मद, मत्सर, माया, अहंकार आदि से ग्रस्त रहकर छटपटाता है। भले ही उसे जीवन सुखद प्रतीत हो किन्तु वह सुख की अपेक्षा दु:ख पीड़ा ही कहीं अधिक भोगता है। अत्तिम गति, संहार (मृत्यु) की कल्पना भी भयावह होती है जिसकी स्मृति मात्र से ही जीव कांपने लगता है। मृत्यु धु्रव सत्य है किन्तु कोई इसे सहज स्वीकारना नहीं चाहता। इन्हीं कष्टपूर्ण कारणों से जीवन का चरम लक्ष्य मोक्ष या मुक्ति को माना गया है। शास्त्रों के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन पुष्य नक्षत्र में जब महाराजा जनक संतान प्राप्ति की कामना से यज्ञ की भूमि तैयार करने के लिए हल से भूमि जोत रहे थे, उसी समय पृथ्वी से एक बालिका का प्राकट्य हुआ। जोती हुई भूमि को तथा हल की नोक को भी ‘सीता” कहा जाता है, इसलिए बालिका का नाम ‘सीता” रखा गया। आज जानकी जयंती के सुअवसर पर सिद्ध विद्यापीठ गलमाधाम में पंडित जीवेश्वर मिश्र एवं प्रेमीगण ब्रम्हाशस्त्र धारिणी महामारी नाशिनी माँ श्री बंग्लामुखी भगवती का हवन, एवं श्री बटुकभैरव आपद्दुधारक मंत्र से हवन एवं महामृत्युंजय मंत्र से हवन कर रहे हैं, ये हवन अमावस्या से लेकर वैशाख पूर्णिमा तक करोना महामारी के संकट को समाप्त करने के लिये तथा लोगों के कल्याण हेतु ( 11 मई से लेकर 26 मई तक) ये हवन निरंतर चल रहा है
आप सभी दशम दिवस कि अग्नि का दर्शन करें।