- हिन्द चक्र
पटना, दिनांक: 29 अप्रैल 2021:: शिक्षायतन प्रांगण में वर्चुअल प्रस्तुति के माध्यम से विश्व नृत्य दिवस मनाया गया।
वैश्विक महामारी को देखते हुए कथक नृत्यांगना यामिनी ने पूरे विश्व की शांति के लिए अपना पैगाम नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया इस कार्यक्रम में वार्ता और साक्षात्कार का आयोजन हुआ। जिसका मुख्य विषय “प्रकृति विचारों” था।
व्याख्यान के लिए शंभू कुमार सिंह (संयोजक, प्रकृति मित्र )द्वारा शंभू कुमार ने प्रकृति में निहित पदार्थों और उसकी ऊर्जा को नृत्य से जोड़ा तथा संभावना बताएं कि जब तक हम हमारी प्रकृति स्वभाविक नहीं होगी हम बेहतर कलाकार नहीं बन सकते हैं और इसके लिए प्रकृति से जुड़कर प्रकृति को समझना होगा।
तथा नृत्ययोग: आरोग्य-आनन्द-मोक्ष का मार्ग” विषय पर श्री हृदय नारायण झा (योगाचार्य) ने अपने साक्षात्कार में नृत्य और योग की कई समानताएं को बताया संपूर्ण अवधारणा अभ्यास और वैराग्य के अनुशासन पर आधारित हैं योग और नृत्य ध्यान से प्राप्त होती है नृत्य में लगन शीलता जो मन को लक्ष्य तक पहुंचने में सहायक होती है । यह लग्न शीलता श्रवण स्मरण कीर्तन वंदन पाद सेवन से आत्म निवेदन आदि में निमग्न होकर ब्रह्मानंद को प्राप्त करता है और यही मोक्ष की अवस्था होती है। ऐसा उन्होंने बताया।
साथ ही प्रस्तुतीकरण में नृत्य के प्राण घुंघरू पर एक छोटी से फिल्म दिखाए गए। जिसके कलाकार अंशिका राज, अनन्या, अनु, चारू चंद्र ,श्वेता सुरभि, स्नेहा ,मधु, रवि प्रकाश थे।
कॉरोना की स्थिति में अभी हम सभी को प्रकृति और योग से जुड़े रहने की जरूरत है। सुंदर व्यवस्थित प्रकृति में यह अचानक से हलचल आई है परंतु अचानक नहीं है और ना ही दूर है बड़े होते हैं उसके प्यार में बोलते हैं। और उसका ही भक्षण करने लगे है। काम क्रोध लोभ मोह माया इन सारी चीजों से ही स्थिति प्रलयकारी हो गई है, इसे त्यागने की जरूरत है। फिर से बुद्घ को जन्म लेने की जरूरत है, सात्विक भाव और संयम की जरूरत है। इसी की नृत्यमय प्रस्तुति के माध्यम से यामिनी ने ध्यान की साधना से शांत रस को उजागर करने का प्रयास किया। सुंदर व्यवस्थित प्रकृति में यह दिखती अचानक हलचल । यह अचानक कि तो नहीं और ना ही क्षण भंगुर।
हम बड़े हैं प्रकृति की गोद में। हमें पाला है प्रकृति की ममता ने। जहां चांदनी ठंडक तो सूरज ने तपाया है। और प्राणी जगत के प्राण को सोने सा चमकाया है।
प्रकृति ही अंतिम और अटल सत्य है…
आह! रूसो!
“प्रकृति की ओर लौटो”
ये कहते हुए तुम खो गए अनंत में
और हम लौट ना सके दिगंत में
खबर क्यों नहीं होती मनुष्य को
धरती के रूठने की
और जमीं के टूटने की
हाय!
ये भय छोड़
ये मोह छोड़
ये पाप छोड़
कि फिर एक बुद्ध को जन्मना होगा
फिर जल भी शांत
वायु भी शांत
अग्नि भी शांत
ओम
प्रकृति ही अंतिम और अटल सत्य है…
इस काव्य पर नृत्य किया। जिसकी रचना पूजा चौधरी व स्वं यामिनी द्वारा किया गया था।
कार्यक्रम का संयोजन स्वेता सुरभि द्वारा संपन्न हुआ।
कार्यक्रम की वर्चुअल प्रस्तुति फेसबुक पेज Shikkshayatan Patna तथा eventolive से भी प्रसारित किए गए। जिसमे लगभग 2000 से ऊपर दर्शक जुड़े हैं। दर्शको के सवालों का भी जवाब विशेषज्ञयो ने दिया।