- जितेन्द्र कुमार सिन्हा
पटना :: वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर- ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का रडार तकनीक से पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने का फैसला 8 अप्रैल (गुरुवार) को सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट के आशुतोष तिवारी की अदालत ने दी। रडार तकनीक से पुरातात्विक सर्वेक्षण से जमीन के धार्मिक स्वरूप का पता चल जाएगा।
सूत्रों ने बताया कि अदालत में प्राचीन मूर्ति स्वयंभू लार्ड विश्वेश्वरनाथ के वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी की तरफ से वर्ष 1991 से लंबित है, इस प्राचीन मुकदमे में आवेदन दिया था। मित्र रस्तोगी की दलील थी कि 14वीं शताब्दी के मंदिर में प्रथम तल में ढांचा और भूतल में तहखाना है, जिसमें 100 फीट ऊंचा शिवलिंग है। यह खुदाई से स्पष्ट हो जाएगा।
अदालत द्वारा कहा गया है कि मौजा शहर खास स्थित ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के एराजी नंबर 9130, 9131, 9132, रकबा एक बीघा नौ बिस्वा जमीन का, पुरातात्विक सर्वेक्षण रडार तकनीक से करा कर यह बताया जाए कि जो जमीन है, वह मंदिर का अवशेष है या नहीं। साथ ही विवादित ढांचे का फर्श तोड़कर देखा जाए कि 100 फीट ऊंचा ज्योतिर्लिंग स्वयंभू विश्वेश्वरनाथ वहां मौजूद हैं या नहीं। दीवारें प्राचीन मंदिर की हैं या नहीं।
सूत्रों ने यह भी बताया कि मंदिर हजारों वर्ष पहले 2050 विक्रम संवत में राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था। इसका जीर्णोद्धार सतयुग में राजा हरिश्चंद्र और वर्ष 1780 में अहिल्याबाई होलकर ने कराया था।
अदालत ने भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण ASI (Archaeological Survey of India) को मामले में जांच करने की मंजूरी देते हुए इस पर होने वाले खर्च राज्य सरकार उठाएगी। आदेश में यह भी कहा गया है कि इसके लिए 5 सदस्यीय कमिटी बनाई जाए और खुदाई की जाए। कमिटी में 2 अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को भी रखा जाए।
काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद मामले में दिसंबर 2019 से ASI द्वारा सर्वेक्षण कराने को लेकर कोर्ट में बहस चल रही थी। दिसंबर 2019 में अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी ने सिविल जज की अदालत में स्वयंभु ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से एक आवेदन दायर किया था। इसमें ASI द्वारा पूरे ज्ञानवापी परिसर का सर्वेक्षण कराने की मांग की गई थी।
पहली बार 1991 में याचिका दायर की गई थी । इसके बाद वर्ष 2020 में अंजुमन इंतजामिया मस्जिद समिति ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर पर ASI सर्वेक्षण के खिलाफ प्रतिवाद दाखिल किया था। ध्यातव्य है कि सबसे पहले वर्ष 1991 में स्वयंभु ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से ज्ञानवापी मस्जिद में पूजा की अनुमति के लिए याचिका दायर की गई थी।
मामले में याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण लगभग 2050 साल पहले महाराजा विक्रमादित्य ने करवाया था। इसके बाद मुगल सम्राट औरंगजेब ने 1664 में मंदिर को नष्ट कर दिया था। इसके बाद यहां ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई थी। याचिकाकर्ता ने अदालत से मंदिर की जमीन से मस्जिद को हटाने और मंदिर ट्रस्ट को कब्जा वापस देने की मांग की थी।