सरस्वती पूजा के अवसर पर उपासना कार्यक्रम में, मां सरस्वती की पूजा आराधना हर्ष उल्लास के साथ संपन्न
- स्वाति
पटना, 16 फ़रवरी, 2021, सरस्वती पूजा के अवसर पर उपासना कार्यक्रम में, मां सरस्वती की पूजा आराधना हर्ष उल्लास के साथ संपन्न हुई। उक्त अवसर पर शिक्षायतन पटना अपने तीनों ब्रांच पर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन के बाद, शिक्षार्थियों में प्रसाद व उपहार बांटे गए।
भारती मा आरती को वंदना लो… गीत पर मोहक नृत्य कर नृत्यांगनाओं में में मोह लिया।
एक स्वर में आरती गाकर पूजा पूर्ण हुई। साथ ही चित्रकला विभाग के नवंकुरो द्वारा चित्रकला प्रदर्शनी की गई।
सौम्या, आर्ना वर्धना, आकृति, आराध्या, आयुषी, के चित्रों को प्रदर्शनी में स्थान दिया गया था। उदयमान चित्रकार सुश्री रीतिका की अप्रतिम सौंदर्य को दर्शाती चित्रकारी प्रदर्शनी का केंद्र थी। सुश्री रीतिका की लगभग 15 चित्रों की प्रदर्शनी की गई थी।
संस्था चीफ ट्रस्टी यामिनी (नृत्यांगना), ने है वीणा वादिनी सरस्वती है हंस वाहिनी सरस्वती गीत पर भाव प्रदर्शित करते हुए नृत्य किया।
सरस्वती जब गढ़ती हैं दुनिया…
कहते हैं सृष्टि के आरंभ में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्माजी ने मनुष्य योनि की रचना की, परंतु वह सृष्टि में छाए मौन से संतुष्ट नहीं थे, तब उन्होंने विष्णु जी से आज्ञा लेकर अपने कमंडल से जल को पृथ्वी पर छिड़का जिससे समस्त पृथ्वी पर कंपन होने लगा और एक अद्भुत शक्ति के रूप में चतुर्भुजी सुंदर स्त्री प्रकट हुई.एक हाथ में वीणा एवं दूसरे हाथ वर मुद्रा में था। वहीं अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। जब इस देवी ने वीणा का मधुर नाद किया तो संसार के समस्त जीव-जंतुओं को वाणी प्राप्त हो गई, तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा. देवी सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण वह संगीत की देवी भी हैं. पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से खुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी. और आज तक हिंदू धर्म में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है. वहीं कलाकारों में इस दिन का विशेष महत्व है। कवि, लेखक, गायक, वादक, नाटककार, नृत्यकार अपने उपकरणों की पूजा के साथ माँ सरस्वती की वंदना करते हैं और आशीर्वाद की मंगलकामनाएँ करते हैं। ऐसा बताते हुए वसंत पंचमी के शुरुआत की रोचक बात बताई।
संस्था की सदस्य पूजा चौधरी ने ऋतु राज के आगमन की विशेषता और आराधना को अपने व्याख्यान में स्पष्ट किया। उन्होंने कहा –
वसंत पंचमी उत्सव क्यों ना बने जब माघ माह में धरती और अंबर का रूप निखर जाता है। वसंत में प्रकृति के कण-कण में उल्लास और उमंग भर जाता है। जीवन एक मधुर उत्सव बन जाता है.पंचमी का दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा और आराधना के लिए रखा गया है।
भारतीय मूल के वैदिक, जैन और बौद्ध आदि धर्मों में देवी सरस्वती का स्थान महत्वपूर्ण है. वैदिक सनातन एवं बौद्ध धर्मो की अपेक्षा जैन धर्म की सरस्वती (श्रुतदेवी) के वृहद स्तर पर पुरातात्विक साक्ष्य प्राप्त हुए हैं | जैन शिल्प में सरस्वती सर्वाधिक लोकप्रिय देवी रही है.
वहीं, संस्था के केंद्राधीक्षक श्री रूधिश कुमार ने माता सरस्वती के विभिन्न नामों और विश्व के अन्य भागों में सुर की देवी सरस्वती की पूजा को विस्तार से बताया – शिव और देवी सरस्वती विधा और नृत्य- संगीत के अधिष्ठाता माने जाते हैं. माँ सरस्वती के 108 नामों में शिवानुजा(शिव की छोटी बहन) से पुकारा जाता है।
जापान में सरस्वती को बेंजाइतेन कहा जाता है। उनके हाथों में एक संगीत वाद्ययंत्र लिए हुए चित्रण किया जाता है। जापान में वे ज्ञान, संगीत और प्रवाहित होने वाली वस्तुओं की देवी के रूप में पूजित हैं । साथ ही थाईलैंड, इंडोनेशिया में भी सरस्वती की पूजा होती है.
सरस्वती हमारी बुद्धि, विवेक तथा ज्ञान आदि मनोवृत्तियों को संरक्षण देती हैं। सरस्वती ना होती तो मानव मन में बौद्धिक चेतना और प्रकृति में स्वर प्रस्फुटित नहीं होते। साथ ही कला और संगीत की आत्मा से परिचय ना होता। सरस्वती जन – जन के मनोभावों को आकार देने की देवी हैं। नृत्य, संगीत, कला से जुड़ने के लिए नवीन प्रशिक्षुओं ने अपना नामांकन कराया। अभिवावकों ने चित्र प्रदर्शनी की तारीफ की तथा कलाकारों को अनंत शुभकामनाएं अर्पित किया। तथा सभी आगत विशेषज्ञों अभिवावकों को संगीत शिक्षायतन संस्था की अध्यक्षा रेखा शर्मा ने आभार प्रकट व सम्मानित किया।