- अवधेश झा
वसुधा में संचित उद्दीप्त यौवन,
अष्ट-वायु से सुगन्धित अंतः मन।
आनंद ह्रदय के कुंड श्रोत से,
प्रकृति आभूषित आत्म उपवन।।
भाव समर्पण दिव्य प्रेम से ,
मधुर रागिनी हो जाता मन।
नव सृजन इस सृष्टि का,
निर्माणों उन्मुख है जीवन।।
ज्ञानमयी देवी की वीणा,
गूंजे दसों दिशाओं में ।
अज्ञानता से कहीं दूर ,
अंतः ज्ञान की उषाओं में।।