पुष्प की यात्रा

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  • अवधेश झा

सीमा नहीं है, इस परिसीमन का
खंड खंड में, बिखरा है मेला ।
कन्ही दूर – दूर खड़ा है कोई
असंख्य तारों के मध्य अकेला ।।

पूनम रात्रि की संध्या बेला,
मध्यम, शीतल ऋतु अलबेला।
जागृत तम, नव पंकज हृदय
झांके जैसे बसंत की बेला।।

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