पुष्प की वीरता

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  • अवधेश झा

अर्जुन के धनुष से निकली,
राम की हूं मैं साध्य तीर।
देखन में हूं सहज-सुंदर,
घाव होते मेरे बहुत गंभीर।।

वीरों के वक्षस्थल पर शोभती,
शस्त्रों की होती है हम से पूजा।
वीरांगाओं की मन की शक्ति हूं मैं,
घर की पूजा में, मेरे सिवा न दूजा।।

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