पुष्प की भावना

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  • अवधेश झा

कांटो में भी रहकर,
सुंदरता की मूरत ।
ईश्वर हो या मनुज
है, तुम्हारी जरूरत ।।

खिले जहां, खिल जाते है
वर्षों से सहमे मुस्कान उहां।
महके तो महक उठे तन-मन
पल्लवित पुष्पित वन उपवन।।

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