पुष्प का मन

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  • अवधेश झा

पुष्प सुगंधित मन में,
प्रिय खुसबू है आधार ।
हृदय तरंगनी नव बसंत की,
अभिलाषा तुम उसपार ।।

दर्शन- सृजन प्रकृति की,
नव नव आनंद का शृंगार ।
तुम में भी वही हृदय छुपा,
जिससे होता भाव विस्तार ।।

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