जितेन्द्र कुमार सिन्हा
पटना :: हरिद्वार महाकुंभ की तैयारी पूरी कर ली गई है। अग्नि अखाड़ा, आह्वान अखाड़ा, निर्मल अखाड़ा की छावनी में पेयजल, विद्युत, शौचालय आदि से संबंधित सभी सुविधाएँ सुनिश्चित करली गई है। भारतीय रेलवे ने रेल यात्रियों के लिए 35 स्पेशल ट्रेन चलाने की व्यवस्थाकी है, वहीं हरिद्वार रेलवे स्टेशन पर भीड़ को कंट्रोल करने के लिए मेला कंट्रोल सिस्टम भी तैयार किया है।हरिद्वार कुंभ मेला को लेकर केंद्र और राज्य सरकार काफी समय पहले हीं तैयारी में लगी हुई थी। इस काम के लिए रेलवे को 661 करोड़ रुपये की बजट मिला था।
हरिद्वार से लक्सर के बीच 27 किलोमीटर रेलवे की सिंगल लाइन को दोहरी करण (डबल लाइन) किया गया है। दोहरी करण हो जाने से इस रूट पर गाड़ियों को इंतजार नहीं करना होगा और जरूरत पड़ने पर ज्यादा गाड़ियां चल सकेंगी।
प्रमुख स्नान के दिन – 14 जनवरी (मकर संक्रांति), 11 फरवरी (मौनी अमावस्या), 16 फरवरी (बसंत पंचमी), 27 फरवरी (माघ पूर्णिमा), 13 अप्रैल (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा हिन्दी नववर्ष) और 21 अप्रैल (राम नवमी) को प्रमुख्य स्नान का दिन है। पहला शाही स्नान 11 मार्च (महाशिवरात्रि) को होगी। उसके बाद 12 अप्रैल (सोमवती अमावस्या), 14 अप्रैल (मेष संक्रांति और वैशाखी), 27 अप्रैल (चैत्र माह की पूर्णिमा) को होगी।कुंभ मेला बारह वर्ष बाद लगता हैं। इस संबंध में कहा जाता है कि ग्रहों के राजा बृहस्पति कुंभ राशि में प्रत्येक बारह वर्ष बाद प्रवेश करते हैं। प्रवेश की गति में हर बारह वर्ष में अंतर आता है। यह अंतर बढ़ते बढ़ते सात कुंभ बीत जाने पर एक वर्ष कम हो जाता है।कुंभ के संबंध में समुद्र मंथन की कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार प्राचीन समय में एक बार महर्षि दुर्वासा के शाप की वजह से स्वर्ग श्रीहीन यानी स्वर्ग से ऐश्वर्य, धन, वैभव खत्म हो गया था। तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए। विष्णुजी ने उन्हें असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने का सुझाव दिया। उन्होंने बताया कि समुद्र मंथन से अमृत निकलेगा, अमृत पान से सभी देवता अमर हो जाएंगे। देवताओं ने ये बात असुरों के राजा बलि को बताई तो वे भी समुद्र मंथन के लिए तैयार हो गए। इस मंथन में वासुकि नाग की नेती बनाई गई और मंदराचल पर्वत की सहायता से समुद्र को मथा गया था। समुद्र मंथन में 14 रत्न निकले थे। इन रत्नों में कालकूट विष, कामधेनु, उच्चैश्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी, कौस्तुभ मणि, कल्पवृक्ष, अप्सरा रंभा, महालक्ष्मी, वारुणी देवी, चंद्रमा, पारिजात वृक्ष, पांचजन्य शंख, भगवान धनवंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर निकले थे। जब अमृत कलश निकला तो सभी देवता और असुर उसका पान करना चाहते थे। अमृत के लिए देवताओं और दानवों में युद्ध होने लगा। इस दौरान कलश से अमृत की बूंदें चार स्थानों हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन में गिरी थीं। ये युद्ध 12 वर्षों तक चला था, इसलिए इन चारों स्थानों पर हर 12-12 वर्ष में एक बार कुंभ मेला लगता है। इस मेले में सभी अखाड़ों के साधु-संत और सभी श्रद्धालु यहां की पवित्र नदियों में स्नान करते हैं।
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